गुरुवार, 28 जनवरी 2010

क्रिकेट आईपीएल जैसी व्यवसायिक लीग के साथ सुरक्षित तो बिल्कुल नहीं हैं।


आईपीएल एक लोकप्रिय महोत्सव है जो चाहे-अनचाहे सुर्खियां बटोर ही लेता है। कारण, शायद में पैसा और आज। 2008 में जब पहले आईपीएल सीजन की शुरुआत हुई तो यह महेंद्र सिंह धोनी की सबसे मंहगी बिक्री के लिए मशहूर हुआ। 2009 में केविन पीटरसन और एंड्रयु फ्लिंटॉफ नें अपने भारी भाव से सभी को चौंकाया। 2010 में वेस्टइंडीज के बिग-हिटर किरॉन पोलॉर्ड को मुम्बई इंडियन्स ने 750000 डॉलर में खरीद लिया मगर इतनी सुर्खियां नहीं बटोरी जितनी कि 11 पाकिस्तानी खिलाडिय़ों ने बिना बिके ही बटोर लीं।

जी हां, पाकिस्तान की टी-20 चैम्पियंस टीम में से एक भी खिलाड़ी की बोली नहीं लगी। तीसरे आईपीएल सीजन के लिए आठों फ्रैचाइजियों ने पाकिस्तान के किसी भी खिलाड़ी को शामिल करने लायक नहीं समझा। कारण और तर्क अपने-अपने हैं। जहां इसपर तमाम पाक खिलाड़ी और पाक क्रिकेट बोर्ड अधिकारी इस पर भड़के हुए हैं और इसे अपनी बेइज्जती मान रहे हैं, वहीं कुछ दूसरे तत्व पाकिस्तान में भारतीय सिनेमा आदि का विरोध करने की तैयारी कर रहे हैं। पाकिस्तान में इसे उनके खिलाफ एख षडय़ंत्र माना जा रहा है और वे सीधे-सीधे इसे भारत सरकार के सिर मढ़ रहे हैं।

इस पर बीसीसीआई के सचिव और आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक एन श्रीनिवासन का कहना है कि आईपीएल फ्रैंचाइजी द्वारा खिलाडिय़ों की बोली में किसी भी तरह से न तो बोर्ड का और न ही भारत सरकार का हस्तक्षेप होता है। साथ ही इस बार आईपीएल में ज्यादा ख्रिलाडिय़ों के लिए स्थान नहीं थे। सभी आठ टीमों के लिए कुल 66 नए खिलाडिय़ों की जरूरत थी। एक टीम में केवल दस विदेशी खिलाड़ी रखे जा सकते हैं और इस सीजन में आठ में से 6 फ्रैंचाइजी को सिर्फ एक-एक विदेशी खिलाड़ी की ही जरूरत थी। श्रीनिवासन यह भी कहते हैं कि हर फ्रैंचाइजी को अपनी मर्जी और जरुरत के हिसाब से खिलाड़ी चुनने का अधिकार है। क्या रामनरेश सरवन, बै्रड हैडिन, ग्रैम स्वैन और डॉग बॉलिंजर जैसे खिलाड़ी बड़े खिलाड़ी नहीं हैं? जो इस आईपीएल बोली में नहीं बिके।

आईपीएल कमिशनर, मोदी, प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी ने कहा कि हर फ्रैंचाइजी के पास अपनी पसंद के खिलाड़ी को चुनने का अधिकार है। जबकि कोलकाता नाइटराइडर्स के मालिक शाहरुख कहते हैं कि कोलकाता नाइटराइडर्स का मालिक होने के नाते यह मेरे लिए भी शर्मिंदंगी का विषय है। हमें हमारी अच्छाई के लिए जाना जाता है, हमें हर किसी को इस लीग में शामिल होने का मौका देने के लिए भी जाना जाता है और हम इसके हकदार भी हैं। अगर पाक खिलाडिय़ों को लेकर कोई दूसरी पेचीदगियां थीं तो यह पहले ही साफ कर दिया जाना चाहिए था। मुझे लगता है कि उन्हें आईपीएल में चुना जाना चाहिए था।

तमाम आरोपो-प्रत्यारोपों और दलीलों के बावजूद किसी का कुछ नहीं बिगडऩे वाला, न ही सरकारों का, न ही आईपीएल का और न ही किसी फ्रैंचाइजी का। अगर कुछ बिगड़ेगा, तो वह रिश्ता, जो क्रिक्रेट और दोनों देशों के क्रिकेटरों ने उन तनावपूर्ण परिस्थितियों में कायम रखा है। ऐसे क ई मौके आए जब दोनों देशों की क्रिकेट का रद्द किया गया मगर ऐसा समय कभी नहीं आया जब किसी भी देश के क्रिकेटरों को नकारा आज के समय गया हो। जब कभी भी जरुरत पड़ी खिलाड़ी अपने खेल से रिश्तों को सामान्य करने के लिए आगे आए। पाक खिलाडिय़ों के आईपीएल में न शामिल किए जाने से एक बात तो सामने आ ही गई कि क्रिकेट आईपीएल जैसी व्यवसायिक लीग के साथ सुरक्षित तो बिल्कुल नहीं हैं।


अगर हमें पाकिस्तान हुकुमत से कोई शिकायत है तो इसे सियासत के स्तर पर ही निपटा जाना चाहिए। अगर यह फैसला फ्रैंचाइजी मालिकों का है तो सरकार को इसमें तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। भारत की दुनिया में एक अलग प्रतिष्ठा है और भारत इस कदर विरोध जताने के लिए क्रिकेट का सहारा नहीं ले सकता है। अगर वीजा और बोर्ड क्लीयरेंस इसका तर्क है तो यह बात तो ऑस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों पर भी लागू होनी चाहिए। आईपीएल एक व्यवसायिक संस्था है तो इसका मतलब यह तो नहीं कि कोई राष्ट्रीय सरोकार नहीं है। आईपीएल की लोकप्रियता भारत के साथ-साथ दुनिया भर के क्रिकेट-प्रेमियों की वजह से है। क्रिकेट प्रेमी अपने पसंदीदा खिलाडिय़ों को इसमें देखना चाहते हैं जिनमें कई पाकिस्तानी खिलाड़ी भी शामिल हैं। जैसे ही शाहिद अफरीदी क्रीज पर उतरते हैं तो बूम-बूम अफरीदी के पोस्टर दर्शकों के हाथों में लहराते दिख जाते हैं। यह सिर्फ इन खिलाडिय़ों का ही अपमान नहीं बल्कि इस खेल क्रिकेट का भी अपमान है। हम क्यों भूल गए कि आईपीएल सीजन 1 में विजेता टीम राजस्थान रॉयल्स में पाक के सोहेल तनवीर की भूमिका क्या रही थी। वे पहले ऐसे खिलाड़ी बने जिन्होंने इस फॉरमेट में पहली बार 5 विकेट लिए। क्रिकेट को कूटनीतिक नजरिए से देखना सही नहीं हैं और न ही क्रिकेट को राजनीति में शामिल करना सही है। नहीं तो क्रिकेट सरहदों के फायदें नुक्सान की गणित में ही उलझ कर रह जाएगी।
आज क्रिकेट एक खेल नहीं बल्कि कुछ लोगों के हाथों का खिलौना है जिसका प्रयोग वे अपने फायदों और हितपूर्ति के लिए मनचाहे तरीके से कर रहे हैं। सरकारें इसके जरिए कभी दो मुल्कों के बीच शांति लाने तो कभी बैर बढ़ाने की कोशिश में हैं, कॉरपोरेट घराने इसका प्रयोग अपने उत्पादों और कंपनियों को मशहूर कर धन बटोरने के लिए प्रयोग कर रहे हैं और इसे चलाने वाले यानि फिल्म स्टार्स खुद को इसकी चमक में रोशन रखने के लिए इसे मनचाही दिशा देने पर अमादा हैं। साथ ही वे सब जो इस खेल को खेलते हैं बड़ी रकमों पर बिककर इस प्रक्रिया में महज कठपुतली बनने पर मजबूर हैं। (वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रदीप मैगजीन ने इस मुद्दे पर अपने विचार कुछ इस तरह बयाँ किये)

1 टिप्पणी:

  1. देखो प्रवीण बात ऐसी है कि ये एक साधारण सी बात है।

    कोई इंसान किसी के ब्लॉग पर क्यों जाए और क्यों टिप्पणी करे? इस बारे में तुम्हें सोचना होगा। मैं जब तुम्हारे ब्लॉग पर अपना वक्त निकाल कर आता हूं, तो मैं कुछ उम्मीदें रखता हूं। तुमने क्या लिखा है यह तो दूर की बात है, ब्लॉग मेरी आंखों को कैसा लग रहा है यह मेरे लिए काफी जरुरी हो जाता है। यह ब्लॉग दरअसल तुम्हारा व्यक्तिगत प्रकाशन है। इसमें संपादक, कला संपादक, रंग संपादक, डिजायनर, रिर्पोटर, प्रबंधनकर्मी, मार्केटिंग करने वाले और प्रस्तुतकर्ता सब तुम ही हो।

    खेल खेल में.. दिखने में अब जैसा है वह मुझे लुभाता नहीं है। यह व्यवस्थित नहीं है। सबसे पहले तो शीर्षक एकदम ही सपाट है। और अक्लमंदी भरा भी नहीं है। फिर भी मैं आगे बढ़ता हूं तो इस उम्मीद के साथ कि कोई अगर लिखता है कि .. क्रिकेट आईपीएल जैसी व्यावसायिक लीग के साथ सुरक्षित तो बिल्कुल नहीं.. तो वह लेख में इसे सिद्ध भी करेगा। मगर ऐसा हो नहीं पाता है।

    आप जिस संस्थान से पढ़ते हैं और जहां काम करते हैं.. और जैसे खेल पत्रकार होना चाहते हैं, वैसा लेखनी में बरकरार नहीं रह पा रहा है। इस से ठीक एक लेख पहले जैसी प्रस्तुति तुम ने दी थी, उससे कम तो मैं नहीं खरीद सकता हूं।
    सच कहूं तो आगे गंभीरता से पढऩे की इच्छा हुई ही नहीं। तस्वीर को जिस जगह लगाया गया है और जैसी तस्वीर को लगाया गया है वह ठीक नहीं है। तस्वीर फटी सी लगती है। इसके साथ ही लेख का शीर्षक पढऩे के बाद में जल्दी से जल्दी इसे पढऩा चाहता हूं मगर ये बीच में आ जाती है। जब तक इससे छूटता हूं तब तक अनिच्छुक सा हो जाता हूं। फिर भी आगे स्कैन करता बढ़ता हूं।

    एन श्रीनिवासन का कहना है कि ... यह क्या तुमने श्रीनिवासन से बात की है या उनकी बात को कहीं से लिया है। स्पष्ट नहीं है। अगर तुमने उनसे बात की है तो तो ठीक, नहीं की तो इसे सही से लिखना चाहिए था। बीच में ठीक है। अंत में लिखा है कि .. वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप मैगजीन ने अपने विचार कुछ यूं व्यक्त किए हैं..। इस कथन को ऐसी जगह लगाया गया है जहां से असमंजस पैदा हुआ। कि ये लेख प्रदीप मैगजीन ने लिखा है या तुम ने।

    ये कुछ बातें जल्दबाजी में देख पाया हूं।

    पर फिर से कहूंगा। तुम्हारे प्रकाशन में रंग, डिजायन, आकार और समग्र प्रस्तुति जब तक ठीक नहीं होती तब तक इसे पढऩे की भी इच्छा नहीं होती है।
    ब्लॉग तो वैसे भी भरे पड़े हैं, ऐसे में इसे विशेष नहीं तो सामान्य दिखने वाला तो बनाना ही होगा।

    और हां, मुझे पृष्ठभूमि का रंग और मस्तक पर लगी तस्वीर बिल्कुल भी पसंद नहीं आई।

    तुम्हारा..
    गजेन्द्र सिंह भाटी

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