शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

खेलों के लिए अहम् साल की खराब शुरुआत. .......


साल 2010 भारत, भारतीय खेलों और खिलाडिय़ों के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाला है। यह साल भारत की दुनिया में प्रतिष्ठा स्थापित करने का साल है। एक तरह से यह साल भारत के लिए 2020 ओलंपिक के लिए ऑडिशन देने का भी है क्योंकि तब तक तो हम खुद को दुनिया की सुपर पावर भी तो बना चुके होगें ना। चीन की भांति अपने घर में हरेक खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करके भारत भी दिखा पाएगा कि हम में भी है दम। हम भी हैं तैयार, दुनिया के समक्ष छाती चौड़ी करके खड़े होने के लिए। हम भी खर्च कर सकते हैं अरबों रूपए अपनी हैसियत दिखाने के लिए। देखा नहीं दिल्ली की सूरत किस कदर बदल रहे हैं हम।

भारत के यह ख्वाब मुझे दिन में सपने देखने जैसे लग रहे हैं। एक तरफ खेलों के लिए स्टेडियमों का ढांचा खड़ा क रने, विदेशियों के लिए फाइव स्टार सुविधाएं लाने के लिए अरबों रूपए बहाया जा रहा है तो दूसरी तरफ हॉकी खिलाडिय़ों को अपने बकाया भुगतान के लिए हड़ताल करनी पड़ रही हैं। वे मांग कर रहे थे पैसों की जो उन्हें मिलना था ,जो थोड़ा मिल भी गया। अब महिला हॉकी खिलाडिय़ों ने भी अपनी मांगे रखना शुरू कर दिया है। उन्हें भी पुरषों बराबर हक दिए जाएं। इन्होने हड़ताल तो नहीं मगर काली पट्टी बाधकर खेलने का मन बनाया है। यदि बात नहीं सुनी गई तो हड़ताल भी कर सकती हैं।



बीजिंग ओलंपिक 2008 में भारत की लाज बचाने वाले इकलौते स्वर्णपदक विजेता निशानेवाज अभिनव बिंदरा को इस लिए आगामी दो वर्ल्ड कप में भाग लेने से रोक दिया गया है क्योंकि वे राष्ट्रमंडल खेलों के ट्रायल में शामिल नहीं हुए। एक खिलाड़ी अपने पैसे पर विदेशों में जाकर अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भाग ले कर आगामी मुकाबलों की तैयारी कर रहा है, उसे देश में महज एक घरेलू ट्रायल के लिए बुलाना कहां तक ठीक है? बिंदरा द्वारा ट्रायल में न आने का फैसला गलत हो सकता है यदि भारत सरकार और निशानेबाजी संघ के पास अभ्यास के बढिय़ा इंतजामात होते।

भारत के मेडल पाने के सपनों को एक और झटका लगा है। 21 जनवरी 2010 को अखबार में एक और खबर पढ़ी खिलाडिय़ों पर प्रतिबंध के बारे में। पंजाब के वेटलिफ्टर विक्की बट्ट, आंध्र की महिला वेटलिफ्टर शैलजा पुजारी पर डोपिंग मामले में आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया है। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) और विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) ने चार अन्य भारतीय वेटलिफ्टर्स पर चार-चार साल का प्रतिबंध लगा दिया है। ये सभी खिलाड़ी अपने ही घर में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में बतौर प्रतिभागी शामिल नहीं हो पाएंगे। भारतीय वेटलिफ्टर संघ पर 5 लाख डॉलर का जुर्माना लगाया गया है और जिसके न दिए जाने की स्थिति में संघ पर राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने पर रोक लग सकती है।

आज भारत में न तो अभ्यास की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं और न ही बड़े स्तर के खेल आयोजन होते हैं। हम खिलाडिय़ों से मेडल की उम्मीद तो करते हैं मगर उस स्तर पर न तो अभ्यास की जरूरतों को पूरा कर पाते हैं न ही सिवाए क्रिकेटरों को किसी दूसरे खिलाड़ी को पैसा दे पाते हैं। ऐसे में या तो खिलाडिय़ों को विश्व स्तर की सुविधाएं दी जाएं या फिर उन्हें कुछ बंधनों से मुक्त किया जाए।

3 टिप्‍पणियां:

  1. More or less it seems a comment to me, not a well written document or article. U could have touched the important aspects a little deeper, a little analytical.

    After the recent changes in the colours and format I can not read the description of blog name. The colour is not fascinating.

    This time around the article is not satisfying.

    What attracts me is the subject and a bit information about players and theis homestates.

    work hard....
    and you will be fine.

    Somehow it lacked that a passionate sports journalist has written this. your writing must say that... Your analysis must behave in that manner.

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  2. thanks a lot.... i do feel same.. i might not have given sufficient time to this. thanks for ur comment...

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  3. Nayi Shuruat par Apko Dhero Shubhkamnaye....

    Blog bahut acha hai
    Best Wishes
    Avinash shrivastava

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