शनिवार, 16 जनवरी 2010

खेल औजार है प्रगति और सम्पनता का......



''फुटबाल उन देशों और महाद्वीपों के लिए प्रगति और सम्पन्नता का औजार है जो पिछडें है, विकासशील हैं।'' यह बात फीफा के अध्यक्ष सेप्प बल्लेट्टर ने उस समय कही थी जब फीफा वर्ल्ड कप 2010 की मेजबानी दक्षिण अफ्रीका को दिए जाने की घोषणा की गई थी। सही में फुटबॉल विश्व में इतना बड़ा खेल है कि किसी भी देश को उन्नति और समृद्धि की राह पर ले जा सकता है। यूरोप में फुटबॉल एक ताकत है तो एशिया में क्रिकेट । साथ ही दूसरी खेलें भी देशों की ताकत और शौर्य को दर्शाती हैं। मगर क्या दुनिया में व्याप्त आंतकवाद किसी भी देश को इस राह पर जाता देख सकता है?

फीफा वर्ल्ड कप 2010 को शुरू होने में मात्र 144 दिन, 19 घंटे और 40 मिनट बचे हैं(इन पंक्तियों को लिखते वक्त तक)। अफ्रीकी धरती फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी करेगी। दक्षिण अफ्रीका का जोहनसवर्ग इस आयोजन की जोर-शोर से तैयारियां भी कर रहा है। मगर बीते रविवार को अफ्रीकी धरती पर टोगो फुटबॉल टीम पर हुए हमले से इस आयोजन में खेल और खिलाडिय़ों की सुरक्षा पर सवाल उठने लगे हैं। साथ ही अफ्रीकी धरती पर पिछले आठ महीनों से आयोजित किए जा रहे अन्य खेल आयोजनों पर भी ग्रहण लगता दिख रहा है। ( फुटबॉल के जरिए विकास लाने के फीफा के प्रयास में पिछले आठ महीनों से नाइजीरिया और इजीप्ट में वल्र्ड अंडर-17 और वल्र्ड अंडर-19 टूर्नामेंट करवाए जा रहें हैं।)
बीते रविवार को अफ्रीकन कप ऑफ नेशंस में भाग लेने अंगोला पहुंची टोगो की अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल टीम पर एक आतंकी हमला हुआ। बस में सवार टीम जैसे ही कंबिडा सीमा में घुसी, आतंकियों ने गोलियों की बरसात कर दी। नतीजा ३ मौके पर ही मारे गए और ८ खिलाड़ी गंभीर रूप से घायल हुए। तेल संसाधनों के धनी मगर गरीब और विवादित देश कंबीडा में लंबे समय से अलगाव की लड़ाई चल रही है। इसको दुनिया की सुर्खियों में लाने के मकसद से यहां के द फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ द एंकलेव ऑफ कंबीडा (एफएलईसी) ने मासूस खिलाडिय़ों को निशाना बनाया।

दुनिया भर में खेल और खिलाडी अपने मुल्कों का सर ऊँचा करते रहे हैमगर आतंकी इन्ही की गर्दन पर बन्दूक रख अपनी हसरतें पूरी करने को आसान रास्ता मानते है आतंकी खेल को रोकना चाहते है, खिलाडी को मारना चाहते है और खेल के ज़रिये पनप रही सकारात्मकता को ख़त्म करना चाहते हैआतंकी चाहते हैं खेल के ज़रिये घटती दूरियों में दीवार बननामगर ना कभी खेल रुका है और ना ही कभी खिलाडी थमाहै इसी भावना से खेला जायेगा फीफा वर्ल्ड कप २०१०, इसी भावना से खेले जायेंगे दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स, इसी भावना से होगा भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश में २०११ क्रिकेट वर्ल्ड कप भी।



खेलों में क्रिकेट को इसकी चाक-चौबंद सुरक्षा के चलते अन्यो की तुलना में सुरक्षित माना जाता रहा है। मगर 3 मार्च 2009 की सुबह इसमें भी आंतकी ग्रहण लगा। पूरी दुनिया उस समय सुन्न पड़ गई जब टीवी पर लाहोर के गद्दाफी स्टेडियम से घायल श्रीलंकाई खिलाडिय़ों की भागते हुए तस्वीरें देखीं। सात श्रीलंकाई खिलाडिय़ों के घायल होने के साथ ही आठ सुरक्षाकर्मियों की भी जानें गईं। फर्क सिर्फ इतना पड़ा कि पाकिस्तान के करोड़ों क्रिकेट प्रेमी कोई भी अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला देख पाने से महरूम हो गए। पाक में वर्ल्ड कप के दौरान किए जाने वाले मैचों को भी रद्द कर दिया गया। साथ ही देश की क्रिकेटिया छवि भी धूमिल हुई । यही कारण है कि पाक खिलाड़ी दूसरे की सरजमीं पर जाकर खेलने को मजबूर हैं।


[4 सितंबर 1972 को पश्चिमी जर्मनी में आयोजित म्युनिक ओलम्पिक में तो पूरी की पूरी इस्रायली टीम को ही मौत के घाट उतार दिया गया था। खिलाडिय़ों और कोच समेत 11 को ब्लैक सेप्टेंबर नाम के एक आतंकी गिरोह ने बंदी बनाकर मार डाला। खिलाडिय़ों पर इस बर्बरता के बाद इतिहास में पहली बार ओलम्पिक को रद्द करना पड़ा ]




5 टिप्‍पणियां:

  1. aapki ye post kafi research based hai.yese informative article k liye aapko der shari badaiyaan.....

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  2. Boy..boy.
    Now you stated making me proud.
    that's what I was talking about.
    I don't know how hard you've tried for this piece of writing, but I know One thing for sure, and that is...that this is the way...

    just stick to it and improvise.

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  3. thanks brother... thanks for your worthy comments.. u taught me the way... so will try to stick to it till last...

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  4. good, khel ko khel hi rahane dena chahiye or ise aatankvad ke bachane ke liye us desh ki gov. ko aage aana chahiye.

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