"understanding consumer engagement with test match cricket"
यह नाम है उस सर्वे के विषय का जो लॉर्ड के मशहूर क्रिकेट क्लब एमसीसी ने किया है। इसका लक्ष्य था यह जानना कि टी-20 के आने से टेस्ट क्रिकेट के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ा है। यह सर्वे दुनिया के तीन देशों भारत, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के क्रिकेट फैन्स की प्राथमिकता के आधारित है। दुनिया भर के मीडिया में यह सनसनी फैल गई कि भारत में सबसे कम टेस्ट क्रिकेट फैन्स हैं। सर्वे में बताया गया की भारत में मात्र सात फीसदी ही टेस्ट क्रिकेट को पसंद करते हैं। क्रिकेट की दीवानगी वाले इस देश में यह आंकड़ा निश्चित तौर पर चौंका देता है। सर्वे के अनुसार न्यूजीलैंड जैसे छोटे से देश में करीब 19 फीसद और दक्षिण अफ्रीका में 12 फीसद टेस्ट क्रिकेट को पंसद करने वाले हैं,जो भारत से कहीं ज्यादा है।
इस सर्वे से प्राप्त आंकड़ों को अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार करना सही नहीं होगा। पहली बात, इस सर्वे के आंकड़ों को भारत के परिपेक्ष्य में सटीक नहीं माना जा सकता है। इसमें तीनों देशों के कु ल 1516 क्रिकेट प्रेमियों से बात की गई। क्या इतने विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह सेंपल सर्वे पर्याप्त है? शायद नहीं। दूसरी बात यह कि सर्वे में पूछे गए सवाल भी सही निष्कर्ष बयान नहीं करते हैं।
सवाल न.1 आपका पसंदीदा क्रिकेट फॉरमेट कौन सा है? अब इस सवाल के जवाब में कोई एकदिवसीय मैचों को चुन सकता है तो कोई टी-20 को। मगर इसका मतलब यह तो बिल्कुल नहीं हो सकता है कि वह क्रिकेट प्रेमी टेस्ट क्रि केट नहीं देखना चाहता है। हो सकता है टेस्ट क्रिकेट उसकी प्राथमिकता में दूसरे स्थान पर हो।
अब दूसरे सवाल से स्थिति काफी हद तक साफ हो जाती है।
सवाल था- आप टेस्ट क्रिकेट के लिए खुद को क्रिकेट प्रेमियों की किस श्रेणी में मानते हैं?1.समर्पित 2.नियमित ३.कभी-कभार 4.टेस्ट क्रिकेट देखते ही नहीं। अब भारत में करीब 68 फीसदी क्रि केट प्रमियों ने खुद को समर्पित क्रि केट प्रेमियों की श्रेणि में रखा। साथ ही 28 फीसदी ने खुद को नियमित टेस्ट किक्रेट प्रेमी माना।
बहरहाल आंकडें कु छ भी कहें मगर भारत में स्थिति कुछ और ही है। पिछले महीने भारत-श्रीलंका के बीच हुए टेस्ट मैचों में कानपुर और मुम्बई में दर्शकों की भीड़ देखकर सोचा भी नहीं जाना चाहिए कि टेस्ट मैंचों का भविष्य किसी तरह के खतरे में है। मुम्बई के ब्रेबॉरन स्टेडियम में जब सहवाग बल्लेवाजी कर रहे थे तो शायद ही स्टेडियम में कहीं बैठने के लिए खाली जगह थी। ऐसे में कैसे मान लें कि कोई भी टेस्ट मैच नहीं देखना चाहता है और टेस्ट क्रिकेट मरने की कगार पर है।
इस पहलु का दूसरा पक्ष यह भी है कि टी -२० के कारण टेस्ट पर असर तो पड़ा है। मागर भारत में इसका वो असर नहीं जो दुनिया के दूसरे देशों में है। कुछ ही दिन पहले सिडनी में पाकिस्तान मैच में तीन दिन तक पकड़ बनाए रखने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया से हार गया। हार के बाद कप्तान मोहम्मद युसुफ ने कहा कि
खिलाडिय़ों का ध्यान टी-20 में था। इसलिए कोई भी मैच में रुचि नहीं ले रहा था। यह बयान सचमुच एक बड़ी सच्चाई है आज की टेस्ट क्रि केट और क्रिकेटरों के सामने। फटाफट क्रिकेट के इस फॉरमेट का सपना इंगलिश क्रिकेट (इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिके ट बोर्ड) ने पहली बार देखा ताकि घरेलू क्रिकेट में दर्शकों को खींचा जा सके। निश्चित तौर पर इंग्लिश क्रि केट ने यह कभी नहीं सोचा था कि टी-20 का भूत खेल प्रेमियों और खिलाडिय़ों पर इस कदर चढ़ जाएगा। इसके दो साल बाद ही अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में इसकी शुरुआत हो गई। आईसीसी ने इसके पीछे का कारण बताया कि वो देखना चाहते हैं कि इसका कोई भविष्य भी है या नहीं। देखते ही देखते अगले दो सालों में इस फॉरमेट का वल्र्ड कप भी शुरु हो गया जिसमें भारत जीत भी गया। फिर क्या था पहले आईसीएल और फिर उसका भी बाप, मेरा मतलब है मंनोरजन का बाप आईपीएल।
इस छोटे मगर दीवानगी भरे क्रिकेट फॉरमेट ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैलेंडर को और भी भर दिया। पहले ही खिलाड़ी ज्यादा क्रिकेट खेलने से परेशान नजर आ रहे थे। मगर खास बात यह भी कि किसी भी खिलाड़ी ने इस फॉरमेट में खेलने से मना नहीं किया। 2006 में कुल 9 टी-20 मुकाबले हुए मगर इन तीन सालों में हमने 115 अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले देख लिए। इसके अलावा 141 मैच आईपीएल और चैम्पियंस लीग ने दर्शकों को दिखाए।
नतीजा क्या हुआ?? खिलाडिय़ों पर खेल का अपार दवाब। इससे पहले देखा जाता था कि खिलाड़ी छोटे स्वरूप वाले फॉरमेट में इसलिए खेलने से मना कर देते थे कि उन्हें टेस्ट क्रिकेट में अपना ध्यान लगाना है। मगर अब आईपीएल से मिले अपार धन के लालच से खिलाडिय़ों की खेल के प्रति प्राथमिकताएं भी बदल गईं हैं। एंड्रयु फ्लिंटॉफ और जेकव ओरम ने खुद को इस फॉरमेट में फिट रखने के लिए टेस्ट क्रि केट को अलविदा कह दिया। दुनिया भर के क्रिकेट विशेषज्ञो की माने तो इन खिलाडिय़ों ने सिर्फ आईपीएल और दूसरी फैंचाइजी के लिए खेलने के दवाब के चलते टेस्ट को बॉय-बॉय कहा है।
इन सभी के बीच सभी में यह डर बैठ गया है कि अब टेस्ट मैचों का क्या होगा? क्या क्रिकेट प्रेमी अपनी क्रि केट वासना को टी-20 देखकर ही मिटाएंगे? क्या क्रिकेट का सबसे पवित्र अवतार अर्थहीन होने लगा है?
so did you like this.
जवाब देंहटाएंenjoy the new look.
Now post regularly..
bahut sundar.... lekhan ki naye saal me shuruvaat to hui hai..............
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