मंगलवार, 16 मार्च 2010

हार कर भी जीते राजस्थानी रॉयल्स........


कल यानी सोमवार के आईपीएल मुकाबले में दिल्ली के डेविल्स ने राजस्थानी रॉयल्स को मात दी। पहले आईपीएल संस्करण में चैम्पियंस रहे शेन वॉर्न के रॉयल्स तीसरे संस्करण में दोनों में से कोई भी मैच नहीं जीत पाए हैं। अभिषेक झुनझुनवाला की 53 रनों की पारी की बदौलत इस टीम ने 141 रन का स्कोर तो बनाया मगर सहवाग की आंधी के आगे यह बौना साबित हुआ।

यह मैच राजस्थानी रॉयल्स भले ही हार गए हों मगर इन्होंने कम से कम राजस्थान के लोगों का दिल जरूर जीत लिया। कल का मैच खेलते हुए टीम एक शोक में शामिल हुई जिस शोक में पूरा राज्य सुबह से डूबा हुआ था। रविवार रात करीब ढाई बजे युवा छात्र-छात्राओं से भरी बस राजस्थान के सवाई माधोपुर के पास करीब 60 फीट गहरी खाई में गिर गई। इस दुर्घटना में 26 युवाओं की जान गई और करीब 30 गंभीर रूप से घायल हुए। ये सभी बीएड के विद्यार्धी थे और एक टूर से वापिस आ रहे थे। इसी दुर्घटना का शोक मनाते हुए राज्य की आईपीएल टीम राजस्थान रॉयल्स मैच के दौरान काली पट्टी बांध कर मैच में उतरी।

आईपीएल पूर्ण रूप से एक व्यवसायिक लीग है और कुछ लोगों का यह मानना भी सही है कि टीम इस तरह से लोगों को भावनात्मक रूप से जोडऩे की कोशिश कर रही है। मगर इस तरह से व्यवसायिक खेलों में कोई टीम या प्रबंधन लोगों की संवेदनाओं का ख्याल रखे, अपेक्षा कम रहती है। यकीनन इससे राजस्थान के लोगों ने भावनात्मक जुड़ाव महसूस किया होगा। यह तो सर्वथा सत्य है कि जो मुसीबत में पास खड़ा दिखता है, जीवन पर्यंत याद रहता है। साथ ही राजस्थान रॉयल्स की इस शुरूआत से लीग की दूसरी टीमें भी प्रभावित होंगी। निश्चित तौर पर यह खेल और समाज के बीच के भावनात्मक या संवेदनात्मक संबधों का यह एक उदाहरण होगा। इसलिए कल के मैच में राजस्थान की टीम हार कर भी जीत गई है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. acha likha.....

    aapne alag alag khabro ko achi tarah joda hai.....

    lekin mujhe ye nahi samjh nahi ata ki
    rajasthan royals....me sirf naaam rajasthan hai naki koi aise khiladi jo is state ko represent kare.....na hi owner is state ka hai

    lekin baki teams me aisa nahi hai

    waise ye sawal stupid sa hai....

    sukh sagar
    discussiondarbar.blogspot.com/

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  2. आईपीएल को इस सकारात्मक नजरिए से देखना जल्दबाजी और गलत होगा। यह एक कमर्शियल वेंचर या व्यावसायिक उद्यम है। इसमें अगर बाजू पर काली पट्टी बांधकर खिलाड़ी खेल रहे हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि वे इसे सहानूभुति प्रकट करने या पीडि़तों के साथ खड़े होने के लिए ऐसा कर रहे हैं। इसका एक कारण मैनेजमेंट बोर्ड और मार्केटिंग की टीम की सोच भी है। वह सोच व्यावसायिक कारणों से शुरू होकर वहीं पर खत्म हो जाती है।

    यह ऐसा मौका है, जब बिना ज्यादा प्रयास किए बहुत कुछ पाया जा सकता है। आईपीएल की टीमें दरअसल विश्व भर के खिलाडिय़ों को मिलाकर बनाई गई है। राजस्थान रॉयल्स में कितने राजस्थानी है? यह तुम भी जानते हो। अब क्रिकेट, बेसबॉल, बॉस्केटबॉल, हॉकी, कुश्ती या कबड्डी कोई भी खेल हो, इसमें एक बात स्पष्ट होती है। यह कि खेल में दर्शक के पास एक अपनी टीम होनी चाहिए जो क्षेत्र, राष्ट्र, रंग, जाति या किसी निजता के कारण उससे जुड़ी हो। जिसकी जीत-हार से उस देखने वाले पर फर्क पड़ता हो। एक बार जब कोई टीम उसकी अपनी हो जाती है, तो फिर उसके बाद वह बंध जाता है। नैतिकता व अन्य मनोवैज्ञानिक दायित्वों से।

    आईपीएल से पहले हमारी टीम थी, भारत की टीम। या रणजी के रुप में हमारे राज्य की टीम। मगर आईपीएल के सभी खिलाड़ी राज्यों के नाम की टीमें होने के बावजूद राज्य के नहीं थे। इसलिए फिल्म कलाकारों को टीमों का मालिक बनाया गया, ताकि जनसमुदाय को बटोरा जा सके। उन्हें समर्थकों में बांटा जा सके। टीमों के अनावरण के वक्त राज्यों और स्थानीयता की मुहर टीमों पर लगाने के लिए चेन्नई की टीम का झंडा उठाने के लिए मीडिया के सामने दक्षिण के फिल्म सितारे को खड़ा किया गया। और अब ऐसा शोक का मौका भुनाया गया।

    इंडियन प्रीमियर लीग मुनाफे का धंधा है। मुनाफा मनोरंजन से जुटाया जाता है, तो ललित मोदी ने शाहरुख खान को लिया, शिल्पा शेट्टी को लिया, प्रीति जिंटा और कारोबारियों को लिया। क्रिकेट का तत्व कहीं हल्का पड़ा, तो इन सेलेब्रिटियों के चेहरे काम आएंगे। चीयरलीडर्स भी लाई गई। अमेरिका के एनबीए व बेसबॉल की व्यावसायिक लोकप्रियता से काफी प्रभावित ललित मोदी ने पूंजी बटोरने के सारे तत्व वहां से लिए। मल्टीप्लेक्स आपकी जेब कब खाली कर देते हैं? और कैसे कर देते हैं? आप सोचते ही रह जाते हैं। पर इनका मुनाफा कमाने का समीकरण ही ऐसा है।

    आईपीएल का सामाजिक विश्लेषण जरूरी है। तुमसे ऐसा करने की कुछ उम्मीद है। कितनी बड़ी विडंबना है कि राजस्थान के सवाईमाधोपुर में एक सूखे तालाब में पुल से गिरी बस में जो 26 युवा मारे गए, उनको या उनके बिलखते परिवारों को सहानुभूति देने वाला मौका क्या था? जरा देखिए। चीयरलीडर्स ठुमका रही थीं। स्टेडियम की जालियों के पीछे बैठी भीड़ तालियों से चौकों-छक्कों का स्वागत कर रही थी। चारों और उत्सव का सा माहौल था।

    तो क्या हमें खुश होना चाहिए? कि देखो यार कितने भले लोग हैं राजस्थान रॉयल्स के। राजस्थान की माटी से जुड़े हुए हैं। दर्शकों को भी तो एक कारण चाहिए ना। एक ऐसा कारण जिसके बूते वह अपनी क्रिकेट टीम के इस कदम को रोमेंटिसाइज कर सके। इस मैच में उतरे खिलाडिय़ों के बाजू से बहती भावनाओं से फिल्मी फंतासी गढऩे में दर्शकों को खूब मजा भी तो आता होगा ना। पूंजी के इस महाखेल को कभी कर्मयुद्ध तो कभी धर्मयुद्ध करार दिया जाता है। क्या मजाक है?

    तुम्हारे पिछले पोस्ट में तुमने उस विज्ञापन का जिक्र किया था, जिसमें एक लाल चटाई पूरे देश को पिरोती हुई गुजरती है। बता दूं कि वह विज्ञापन भी मौलिक नहीं था। उसकी संकल्पना तो चुराई गई ही थी, मगर बड़ी बेशर्मी से कुछ दृश्य भी मार लिए गए।

    तो कहना यही है कि पूंजी का खेल है। समाज में कुछ चीजों को बड़ी ही चतुराई से प्रवेश कराया जा रहा है। एक किस्म की संस्कृति विकसित की जा रही। पूरा का पूरा मर्चेंडाइज फ्रैंचाइजी खड़ा हो रहा है, होगा भी। पटकथाएं लिखी जानी है। दर्शकों के खाने-पीने के सामान के लिए स्टेडियमों में महंगे टेंडर उठेंगे। परदे के पीछे और मेजों के नीचे नोट दिए जाएंगे। कुछ विशेष चीजें कूल होंगी, कुछ विशेष चीजें हॉट होंगी। बाकी सब को औसत होने पर कौसा जाएगा। बहुत कुछ होगा। बस जिस भावना से तुमने इस वाकये को देखा है, वही भावना इस शोक की घड़ी का इस्तेमाल करने वालों में नहीं होगी।

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  3. तुमने प्रोफेशन में भी इमोशन ढूंढ लिया। बहुत अच्छे। नहीं पता राजस्थान रॉयल्स ने सचमुच इसलिए ही अपने हाथों पर काली पट्टी बांधी थी, या ये सिर्फ लोगों की सहानुभूति पाने का एक रास्ता था। बहरहाल, तुमने इस व्यावसायिकता में भी भावनाएं डालकर हमें सोचने का अलग नज़रिया दे दिया। उनकी ईमानदारी उनके साथ ही रहने देते हैं, तुम्हारी भावनाओं की कद्र करते हैं। अपनी सोच को इसी तरह ईमानदार बनाए रखना।

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