गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

भारत तो जीता मगर अमला नहीं हारा


तारीख:18 फरवरी 2010
स्थान: ईडन गार्डन, कोलकाता
टेस्ट मैच, पांचवा दिन, भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका

सुबह 9 बजे
  • दक्षिण अफ्रीका 115-3 , हाशिम अमला 49 (नाबाद), प्रिंस 0 (नाबाद)
  • भारत को जीत के लिए सिर्फ 7 विकेट और अफ्रीका को हार टालने के लिए 90 ओवर या दिन भर का खेल।
शाम 4:30 बजे
  • दक्षिण अफ्रीका- 289/10, हाशिम अमला-127 (394 गेंद) नाबाद


कहा जाता है कि टेस्ट क्रि केट की अपनी एक क्लास होती है और अदभुत सा रोमांच भी। ईडन गार्डन में हुए इस रोमांचक और सांसे रोक देने वाले मैच में यह साबित हुआ है। यह मैच दुनिया के उन क्रिकेट आलोचकों को करारा जवाब है जो टेस्ट क्रिकेट के भविष्य पर सवाल उठाते हैं। करीब 40000 क्रिकेट प्रेमियों से भरे इस भव्य स्टेडियम ने क्रिकेट के इस अवतार का सबसे रोमांचक मुकावला देखा। यह मुकाबला भारत को अपनी बादशाहत बचाने और घर में सीरीज हारने के कलंक से बचने के लिए भी अहम रहा है। एक टेस्ट जहां सात शतकीय पारियां खेली गईं, स्पिन के जादुगरों ने तमाम धुरंदर बल्लेबाजों को पवेलियन की राह दिखाई। इस मैच को चौथे से पांचवें दिन ले जाने की भूमिका के लिए मौसम को भी याद किया जाएगा।

इस मैच को दोनों टीमों के बीच बादशाहत की भिंड़त के रूप में तो याद किया ही जाएगा, साथ ही एक खिलाड़ी के प्रदर्शन को भुला पाना असंभव होगा। खिलाड़ी है भारतीय मूल के हाशिम अमला। दोनों पारियों में शतक जड़ने वाले अमला ने मैच को एकतरफा होने से बचाया और भारत को कड़ी चुनौती दी। दिन की नौ गेंदे बचीं थी और भारतीय समर्थकों के साथ-साथ खिलाड़ियों के भी हौसले पस्त होते दिख रहे थे। मगर इन सबके बीच एक हाशिम ही थे जो स्तंभ की तरह खड़े होकर पहाड़ सा हौसला दिखाते रहे।

यकीनन टेस्ट क्रिकेट खेल का महान स्वरूप है यहां खिलाड़ी को अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर मौका मिलता है। हाशिम अमला ने यही कर दिखाया है और खुद को उन महान खिलाड़ियों की फेहरिस्त में शामिल कर लिया है। इस प्रतिभावान खिलाड़ी ने जिस कदर एक-एक गेंद, गेंदबाज, सत्र और पूरे दिन का सामने किया, काबिले तारीफ है। 90 ओवर के पहाड़ को काट कर 9 गेंदों तक लाने वाले इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी ने इस मैच को यादगार बनाने का कीर्तिमान स्थापित किया है। भारत अपनी बादशाहत बचाने में कामयाब तो हुआ है मगर हाशिम अमला को जीतने से कोई नहीं रोक पाया। यही खेल की महानता है और यही खिलाड़ी को महान बनाती है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सरल..
    स्पष्ट..
    सुगम..
    कम्युनिकेटिव..
    और अच्छी टिप्पणी।

    असल में इसे ही ब्लॉग के लायक कहा जाता है।

    हालांकि यह कुछ छोटी रह गई। इसे जैसे-जैसे पढऩा शुरू किया, वैसे ही और अधिक पढऩे की इच्छा पैदा हुई। लेकिन फिर यह खत्म हो गई। मैं और पढऩा चाहता था।

    खैर जितनी भी थी, बेहतर थी। चित्रों और प्रस्तुति ने इसे और भी सादृश्य और आकर्षक बना दिया था।

    जारी रखो।
    निरंतरता बनी रहे तो और भी अच्छा।
    तुम्हारा...

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  2. वाकई अंत तक संघर्ष करके अमला ने एक महान खिलाडी होने का परिचय दिया है. लेकिन वो अपनी टीम को हार से नहीं बचा सका, इस बात का मलाल उसे जिंदगी भर रहेगा.
    लेखन के साथ चित्रमय प्रस्तुति शानदार है, लेकिन इसमें भारत के विनिंग मोमेंट को लगाएं तो बेहतर लगेगा.
    मैं खेलों के प्रति आपकी समझ और रचनाधर्मिता का कायल हूँ. इसी तरह लिखते रहिये और कभी हमारे ब्लॉग पर भी आईए.

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  3. in sure and short,,,,

    mai to yahi hi kahunga ki hum logo ki judgment me depend karta hai ki kaun kaisa khela.....kabhi hum hi kehte hai ki seniors ko hata kar naujawan khiladiyon ko mauka dena chahiye ya iska ulta...

    behtar hoga ki hum ek khel ko khel k roop me hi le....

    sukh sagar
    http://apnaakhar.blogspot.com/

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