गुरुवार, 11 मार्च 2010

सड़क पर खेलते बच्चे तो नासमझ होते है मगर....


कल सुबह घर से ऑफिस आते हुए मैंने कुछ बच्चों को सड़क पर खेलते हुए देखा। बच्चे कंचे खेल रहे थे। मैंने कुछ देर रूक कर देखा, देखकर अच्छा लगा। वे उस खेल में माहिर लग रहे थे और बड़ी खूबसूरती से कंचों को जमीन पर किए गए हल्के से गढ्ढे में लुढ़काते हुए डाल रहे थे। मगर अचानक खेलते हुए उन्होंने एक-दूसरे की कॉलर पकड़ ली और गाली-गलोच करने लगे। मैं देखकर चौंका मगर मुझे उनकी मासूमियत और नासमझी पर हंसी भी आई। अक्सर बच्चे खेलते-खेलते लड़ पड़ते हैं क्योंकि शायद उन्हें प्रोफेशनल्जिम का ज्ञान नहीं होता है। इन बच्चों की नामसमझी पर हंसी से ज्यादा हंसी मुझे पाक क्रिकेट में लगातार चल रहे तमाशे पर आती है। इन बच्चों से ज्यादा नासमझ शायद पाक क्रिकेट बोर्ड अधिकारी और खिलाड़ी हैं।

पाकिस्तान क्रिकेट का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है। दुनिया के नक्शे पर एक बिंदु सा दिखने वाले इस मुल्क में अनेकों महान खिलाड़ी पैदा हुए हैं। अब्दुल कादिर, ज़हीर अब्बास, अयाज़ मेमन, रमीज रजा, इमरान खान, जावेद मियांदाद, आमिर सोहेल, वकार युनुस, वासिम अकरम, शकलेन मुश्ताक, इजाज़ अहमद सलीम मलिक, सईद अनवर और इंज़माम-उल-हक सरीखे खिलाडियों ने इस मुल्क की क्रिकेट को सुनहरे दिन दिखाए हैं। मगर विवादों का इतिहास इससे भी ज्यादा भारी-भरकम रहा है। पूर्व पाकिस्तानी कप्तान इंजमान-उल-हक का टीम कोच बॉब बूल्मर को धक्का देकर कमरे से बाहर निकालना, शोएब अख्तर का बूल्मर को थप्पड़ जडऩा, दुनिया के इतिहास में पहली बार किसी कोच की विवादास्पद मौत, खिलाडिय़ों की आपसी भिड़ंत, भड़काऊ बयान, डोपिंग के चलते बैन, आए दिन टीम की कप्तानी और बोर्ड अधिकारियों के फेरबदल, खिलाडियों की सुरक्षा पर सवाल और बॉल टेंपरिगं के मामले आम हैं। और अब इस कड़ी में युनुस और युसूफ पर अनिश्चितकालीन प्रतिबंध। साथ ही शोएब मलिक और राणा नावेद पर एक-एक साल के प्रतिबंध के साथ भारी जुर्माना और शाहिद अफरीदी, दोनों अकमल बंधूओं पर जुर्माना लगाया गया है।

सजा के पीछे का कारण ऑस्ट्रेलिया के दौर पर टीम का शर्मनार प्रदर्शन बताया गया। टीम तीन टेस्ट मैचों, 5 वनडे ओर ३ टी-20 मुकाबलों में एक भी मैच नहीं जीत पाई। साथ ही युनुस और युसुफ पर टीम में जहर घोलने, राणा नावेद और शोएब मलिक पर अड़ियल रबैये और अफरीदी के साथ-साथ अकमल बंधुओं का मैनेजमैंट के साथ अनैतिक व्यवहार भी कारण बताया गया। दुनिया भर में खिलाडिय़ों को मिली इस सजा की आलोचना हो रही है। खुद पाक में दो तरह की प्रतिक्रिया देखी जा रही है। इंजमाम उल हक और रासिद लतीफ ने खिलाडिय़ों को कोर्ट जाने की सलाह दी है जबकि जहीर अब्बास और रमीज राजा ने टीम के माहौल को सुधारने के लिए इस सजा को उचित बताया है।

यहां किसी को गलत या सही ठहराना थोड़ा मुश्किल होगा। साथ ही इससे भी मुश्किल होगा उन करोड़ों क्रि केट प्रेमियों को खिलाडिय़ों की असलियत समझाना जिन्हें वे अपना आदर्श मानते हैं, जिनके खेल को वे पसंद करती है। खेल में खिलाडिय़ों को प्रोफेशनलिज्म की समझ होना कितना जरूरी है ये पाक खिलाडिय़ों के व्यवहार और अंहकारी सोच से समझ आता है। खेल के इस स्तर पर खिलाडिय़ों का प्रोफेशनल व्यवहार ही तो होता है जो खिलाड़ी को उन सड़क पर कंचे खेलते बच्चों की नासमझियों से अलग करता है। यहां दोष सिर्फ खिलाडिय़ों का नहीं बल्कि उस बोर्ड का भी है जो इस मुल्क में क्रिकेट का संचालन कर रहा है। महज हार या व्यवहार के आधार पर किसी खिलाड़ी पर आजीवन बैन लगा देना उचित नहीं ठहराया जा सकता है। दौरे के दौरान जिन खिलाडिय़ों का व्यवहार खराब था उन्हें वापस क्यों नहीं भेजा गया? या मैनेजमेंट ने कोई भी निर्णय दौरे के दौरान क्यों नहीं लिया? ये तमाम चीजें खिलाडिय़ों और अधिकारियों को कठघरे में खड़ा कर रही हैं। इनकी नासमझी न सिर्फ खेल को नुकसान पंहुचा रही है बल्कि पाक क्रिकेट को और गर्त में ले जा रही है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. bilkul sahi likha hai, pakistani cricket aur gali mein hone wale khelon mein koi fark nahin rah gaya hai. lekin iske peeche sirf khiladi hi nahin balki cricket prabandhan bhi barabar doshi hai. pakistani team aur vivadon ka to choli-daaman ka saath raha hai, iske baavjood koi kathor kadam nahin uthaye gaye...iske liye kahin na kahin international cricket ko regulate karne wala ICC bhi jimmedar hai.

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  2. अच्छा है।
    एक संक्षिप्त मगर संतुलित टिप्पणी की है तुमने।

    व्याकरण की गलतियां यहां सबसे ज्यादा मुखर कमजोरी है। शब्दों की गलतियां भी। हो सकता है कि जल्दबाजी में ऐसा हुआ हो, पर क्या कहें। अगर गलती है तो है।

    इसके अलावा मेरी इच्छा थी कि कुछ और पढऩे को मिलता। पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के इतिहास की अपनी अलग ही रंगीनियां हैं। अलग ही कहानियां हैं। जिन्हें बांटा जा सकता था। जिनका विश्लेषण किया जा सकता था। मगर फिर भी मुझे इसी विषय पर हिंदी में उपलब्ध दूसरे लेखों से तुम्हारा लेख ज्यादा पसंद आया। आखिर कंचों के खेल से आज अरबों के क्रिकेट की तुलना करते हुए मिसाल कौन देता है। क्रिकेट खेलने वाले बचपन में कंचे ही खेलते हुए हार-जीत और प्राप्ति का सुख भोगते हैं। वहां जीते हुए बड़े आकार का कंचा और छोटी-छोटी रंग-बिरंगी कंचियों को बड़ा एचीवमेंट मानने वाला बालक, क्रिकेट खिलाड़ी बनता है तो चौके-छक्के और ट्रॉफियों की कल्पना करता है। जो गली में कंचे खेलते हुए एक विशेष किस्म की प्रतिक्रिया और व्यवहार विकसित कर लेता है, वो युवा होने पर दूसरे खेल में भी वही तो दोहराएगा।

    पाकिस्तान का क्रिकेट, दरअसल हमारे विश्व के क्रिकेट जगत में एक अलग किस्म का जुनून पैदा करता है। यह जुनून टीम के कपड़ों के हरे रंग और तारों में नजर आता है। उनके तेज रफ्तार गेंदबाज साधारण खेल को भी एक अलग फंतासी प्रदान करते हैं। मगर आज हालात दूसरे हैं। टीम बिखर चुकी है। पहले पाकिस्तान में लोकतंत्र की लड़ाई चल रही थी, तो टीम अच्छा खेल रही थी। अब लोकतंत्र और स्थिर शासन है तो टीम में लोकतंत्र नहीं है। टीम से यहां मतलब वहां के बोर्ड से भी है। क्या बोर्ड है? जितनी बात की जाए उतनी ही वक्त की बर्बादी। पर करनी तो होगी। रातों-रात फ्रिज से दूध की तरह इसके अध्यक्ष और पदाधिकारी बदल जाते हैं। और क्या कहें। पूरे विश्व के क्रिकेट समुदाय ने इस ताजा कदम की आलोचना की है।

    क्या बीत रही होगी उन पाकिस्तानी युवाओं के मन पर जो धूप में क्रिकेटर बनने के लिए खून-पसीना जला रहे हैं। वहां के युवा तेज गेंदबाज। सभी को धक्का ही लगा होगा। आम जनता पर क्या बीत रही होगी। खैर, यह एक राजनैतिक कदम भी है। पर एक न्यूनतम अनुशासन की तो हमेशा कमी रही ही है पाकिस्तानी क्रिकेट में।

    खैर, प्रवीण इस पर गहन विश्लेषण किया जा सकता था। पर समय और शोध बड़ी बाधा है। तुमने न्यायोचित काम किया है। मेरी उम्मीदें कुछ ज्यादा थी। पर कह सकता हूं कि एक पाठक के तौर पर तुमने निराश नहीं किया है। बस, जारी रखो। कल का दिन भी विशेष है। अब आगे कुछ हफ्ते तुम्हारे की-बोर्ड को गर्म रखेंगे। आशा करता हूं, खेल-खेल पर इन दिनों ज्यादा बार आना पड़ेगा। इतना कुछ पढऩे के लिए।

    अच्छा है।
    बेहतरीन हो सकता था।
    प्रशंसा...।

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  3. आपकी टिप्पणियों से मेरे भीतर एक अजब सी ललक पैदा होती है. आज सुबह से स्वास्थ्य खराब था मगर आपके शब्द मेरे कानों में गूँज रहे थे, और उसी से न चाहते हुए भी मेरे दिमाग में लिखने की चाह जाग रही थी.
    धन्यवाद्. . . .

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  4. muze to thik laga...shuruat achhee ha..aage aur b achha hoga....nice...warna aapki umara me log likhna aur padhna kaha chahte ha....

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