एक समय में विश्व विजेता रही भारतीय हॉकी टीम अपने ही घर में हो रहे विश्व कप सेमीफाइनल का सफर तक नहीं तय कर पा रही है। विश्व हॉकी में तीसरे पायदान पर खड़ी स्पेन टीम के हाथों 5-2 की हार ने भारत के सेमीफाइनल की उम्मीदों पर पानी फेर दिया । शुरूआती मैच में अपने चिर प्रतिद्वंदी पाक पर जीत हासिल करने के बाद लगातार दो निर्णायक मुकाबलों में टीम हार गई। दोनों मैचों में भारतीय हॉकी खिलाड़ी तेज-तर्रार खेल , खेल की कला और रणनीति के मामले में पहले ऑस्ट्रेलिया और फिर स्पेन के सामने हांफते नजर आए। किसी जमाने में इस खेल की महारथी रही भारतीय टीम के खिलाड़ी आसान मौकों को गंबाते दिखे। साथ ही स्पेन के साथ मुकाबले में तीन पेनेल्टी कॉर्नर पर को भी खिलाड़ी गोल में तब्दील नहीं कर पाए। स्पेन के हाथों यह हार इसलिए भी ज्यादा खल रही है क्योंकि अभी टीम स्पेनिश कोच ब्रासा की देखरेख में खेल रही है। और ऐसे में टीम से यूरोपीय टीमों जैसा तेज-तर्रार खेल और पैनेल्टी कॉर्नर जैसे मौकों को गोल में बदलने की आस रखना गलत नहीं है। मगर पिछली दोनों हार से यह उम्मीद टूटती दिखी है।
विश्वकप मेजबान टीम की हालत यह है कि सेमीफाइनल में पहुंचने के लिए खुद की मेहनत से ज्यादा दूसरों की जीत- हार पर आश्रित रहना पड़ रहा है। सेमीफाइनल में जगह बनाने के लिए भारत को अगले दोनों मैच जीतने के साथ ऑस्ट्रेलिया और स्पेन का भी हारना जरूरी होगा जो दिन में सपने देखने से कम नहीं लग रहा है। इसलिए हॉकी को अपने पुराने दिन दिखाने की जरूरत है। वही 1975 की विश्व कप जीत वाले पुराने दिन। हॉकी को एक बार फिर दिल देने की जरूरत है। इस बार दिल देना होगा मगर दिल से. किसी अहम् टूर्नामेंट से ठीक पहले खिलाडियों को कुछ पैसे देकर, आयोजक लाकर, चार सितारों से प्रचार कराकर या फिर शहर में चार होर्डिंग टंगवाकर नहीं। यहां अब हॉकी को दिल देने से मतलब होगा बदलाव।बदलाव जो लम्बे समय तक बना रहे न की किसी अहम् टूर्नामेंट से पहले। खेल की आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ आधुनिक कोंचिग और तकनीकों से भी खिलाडिय़ों को रूबरू कराना होगा। आक्रामक हॉकी के एशियाई अंदाज के साथ-साथ यूरोपीय सुरक्षात्मक हॉकी की बारीकियां सीखना भी होगा।
आठ महीने पुरानी हॉकी इंडिया, नया विदेशी कोच, नया कप्तान और पैसे के लेन-देन के ताज़े विवादों के साथ ये टीम इस वर्ल्ड कप में उतरी। इन तमाम चीजों के बीच खिलाडियों की पयार्प्त ट्रेनिंग जो विश्व की शीर्ष टीमों से भिड़ने के लिए जरुरी थी,ध्यान नही दिया गया। करीब २६२ करोड़ खर्च कर ध्यान चंद स्टेडियम को आधुनिक तो बनाया गया मगर उस आधुनिक स्टेडियम में खेलने वाली अपनी ही टीम के प्रदर्शन से उनमें आधुनिक ट्रेनिंग की कमी साफ़ झलकी। कारण है हॉकी के प्रति दिल से काम न करने की भावना। हॉकी में यदि किसी रिवाइवल की इच्छा है तो इसके लिए चार दिन पहले तैयारी वाली मानसिकता को त्यागना होगा। किसी लेखक ने सही ही कहा है कि “Perfection is not attained just in one day, it comes in slow degrees।” अपने ही घर में मिली इस हार से शायद सुधार का सबक मिलेगा और धीरे-धीरे भारतीय हॉकी अपने पुराने बर्चस्व को लौटा लाएगी।
'फ़र्ज़ी' पर कुछ शब्द
1 वर्ष पहले
bahut dukhhhhhhhhh hua!!!!
जवाब देंहटाएंkuch karne se pehle in bade bade adhikario ko line me khada karke goli maro.......jo time pe khiladio ko payment tak nahi dete aur......rashtriya khel ki dhajjiya khule aam uda rahe hai....
ek aur IPL pe arbo uda raha hai india!!!
hockey masik payment ko taras rahi hai...
ye sab isi desh me hota hai bhai logon.
sabse pehle gill ki gugly karo!!!
sukh sagar
lucknow
http://discussiondarbar.blogspot.com/
अभी समय का बेहद अभाव है।
जवाब देंहटाएंऐसे में विश्लेषित टिप्पणी करना मुश्किल है।
संक्षिप्त यही है कि बहुत दिन बाद पढ़कर अच्छा लगा।
भारत-पाकिस्तान मैच के बारे में लिखते आनंद आता।
लेख की शुरूआत लिखने से मुझे उसका अंत ज्यादा पंसद आया।
bhai aaj competition ka daur hai, aur har aadmi paise ke pichhe bhag raha hai....
जवाब देंहटाएंmujhe toh lagta hai ki hockey players ko lagne laga hai ki hum zyada din nahi tik payenge, isliye wo strike jaise hathkande apnakar paise kamane par zyada vishwas kar rahe hai, naa ki achchhi performance par....
1975 me jab hockey team jitati thi inki financial haalat tab bhi lagbhag aisi hi hoti thi, lekin tab ye aage badhne aur desh ka naam roshan karne ki ummid se khelte the, lekin aaj paisa kamakar apna aur apne bachcho ka bhavishya secure karne ke nazariye se....
mujhe lagta hai, hockey main time to time badlav karke isme kuchh change karne ki zarurat hai, taaki viewers ka interst iski aur badhe tabhi hockey aur iske khiladiyon ka kuchh bhala hoga.... aur yes change is the compulsory rule of nature and we shouldnt step back frm this thng....