मंगलवार, 6 जुलाई 2010

एडिडास क्यों बताए कि कौन सी हो फुटबॉल?

  फुटबाल का विश्व कप चार साल में एक बार आता है। जितना इंतजार एक खेल प्रेमी को इसका नहीं होता है उससे कहीं ज्यादा स्पॉन्सर कंपनियां इसके इंतजार में रहती हैं। इतना बड़ा इंवेट जो है। और हां, बड़ा इवेंट है तो बड़ा मुनाफा भी यहीं से आना है। 32 टीमें और उन पर नजर गड़ाए बैठीं ये कंपनियां। इस वर्ल्ड  कप में दुनिया के sports आउटफिट यानी खेल poshak बनाने बाली सबसे बड़ी कंपनी एडिडास ने 12 बड़ी टीमों के साथ अनुबंद किया। अन्य व्यावसायिक हितों वाली कंपनियों में प्यूमा ने 11 और नाइकी ने 9 टीमों के साथ करार किया। अब 4 टीमें खेल के मैदान में बची हैं। इनमें एडिडास के साथ अनुबंध वाली जर्मनी और स्पेन, प्यूमा की उरुग्वे और नाइकी के साथ वाली हॉलैंड मैदान पर बची हैं। और, अब इन्हीं टीमों के प्रदर्शन पर टिका है मुनाफे का सारा खेल। दांव बहुत बड़ा है। जहां कंपनियां हर दूसरे हफ्ते नई-नई रणनीतियां बनाती रहती है कि बस मुनाफा कुछ और बढ़ जाए। ऐसे में अब यह आयोजन चार साल बाद आना है। खैर, एक खेल प्रेमी को इस दांव से क्या लेना। उसे तो चाहिए वो खेल का रोमांच जिस कारण वह इसे पसंद करता है।

   क्रिकेट में जिस तरह खेल के छोटे वर्जन यानी 20-20 को लाया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा रन बनें, ज्यादा चौके-छक्कों की बरसात हो और ज्यादा दर्शक खींचे जाए। ठीक उसी तरह के प्रयोग फुटबॉल ने भी किए हैं। एक नई गेंद, एडिडास जाबुलानी। इस कंपनी एडिडास की मानें तो ये ज्यादा सही बॉल है। कंपनी के मुताबिक इस बॉल से खेल में तेजी और रोमांच बनाया रखा जा सकता है। गेंद कई इंजीनियरिंग प्रयोगों और तकनीकी को ध्यान में रख कर बनाई गई है और एकदम गोल है। ऐसी बॉल जो लक्ष्य को भेदने में ज्यादा समर्थ है। मगर जिस तरीके से 12 जून को ये गेंद इंग्लिश गोलकीपर के हाथों से निकल कर सीधे गोल के नेट पर जा लगी थी, सभी ने चौंकते हुए इस गेंद की बनावट पर सवाल खड़े किए थे।  अमेरिकी गोलकीपर हॉबर्ड ने खुलकर इस गेंद के फील्ड पर अजीबोगरीब व्यवहार पर सवाल खड़े किए। आखिर क्या नया किया होगा इस गेंद में एडिडास ने? 
 कुछ भी हो, इतना जरूर है कि यहां एडिडास के लिए खेल सिर्फ और सिर्फ मुनाफे का है। बड़ा मुनाफा। और हां, अब कुछ बड़ा पाने के  लिए कुछ बड़ा तो करना ही होगा न। क्रिकेट में पिचों और नियमों को बल्लेबाजों के अनुकूल क्यों किया गया? ताकि ज्यादा रन बने और खेल के जरिए कारोबार ज्यादा चाशनी वाला हो। क्या कुछ ऐसा ही जाबुलानी लाकर तो नहीं किया जा रहा है? कारण और भी कई हो सकते हैं। टीमों को या कुछ विशेष टीमों की रणनीतियों को फायदा पहुंचाने की कोशिश। गोलकीपर और बॉल के बीच के तालमेल में कुछ बदलाव लाने की कोशिश। या ऐसा ही कुछ। गेंद के जरिए खले में बदलाव संभव हैं। एडिडास जाबुलानी गेंद में कुछ भी अजूबा हो, ये कहीं न कहीं अपनी टीमों को फायदा पहुंचाने और ज्यादा धन कमाने के मकसद से प्रेरित प्रयास लगता है।

  क्या होगा अगर एडिडास ने अपने मुनाफे के लिए गेंद में कुछ बदलाव भी किए होगें तो? अगर फाइनल में जर्मनी और स्पेन नहीं पहुंची तो? और अगर यही दोनों टीमें फाइनल में एक -दूसरे के विरुद्ध खेलने उतरीं तो? क्या यहां खेल और खेल प्रेमियों के साथ न्याय हो रहा है या भारी मुनाफे के ढेर में हुनर और खेल भावना का दम घोंटा जा रहा है? इसका सीधा-साधा असर खेलों के सामाजिक और आर्थिक ढांचे पर जरूर पड़ेगा, इस बात को ध्यान में रखा जाए।

3 टिप्‍पणियां:

  1. खेल पर बढ़ते धन प्रभाव को लेकर आपकी चिंता जायज है। बात क्रिकेट का हो या फिर फुटबॉल की पैसों का जोर खेल भावना को कमजोर कर रहा है। टिकट हम खरीदते है, टेलीविजन हो या स्टेडियम खिलाड़ियों से ज्यादा टेंशन हम लेते हैं।
    अच्छा वीषय चुना है।

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  2. big ha ha ha ha ha for sandeep paji.......are mamu.....aaj kal atta bhi SHAKTI BHOG chap k 30 rupey kilo bik raha hai to.........ye to world k top events me se ek hai.....paisa to bahega hi....

    waise praveen bhai ne kafi lambe arse se chali a rahi shikayat ko waiting se RAC me la diya....acha laga ......ba ab confirmed mode me ana baki hai ....

    best regards...

    sukh sagar singh bhati
    http://discussiondarbar.blogspot.com

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  3. paise aur khel ka choli daman ka saath hai praveen...jahan bajar hoga wahan munafe par bhii najar hogi.. achcha likha hai... sport reporter sahab, chandigarah jaane ke baad blog likhna kyu band kar diya?

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