रविवार, 11 जुलाई 2010

फीफा वर्ल्ड कप 2010: खेल पर कम और ऑक्टोपस पर ज्यादा बातें करते हम

        इस वर्ल्ड  कप को अगर सबसे ज्यादा कोई टीम याद रखेगी तो वह होगी जर्मनी। कारण टीम का कमतर प्रदर्शन नहीं है। कारण है खुद को हराने में समुद्री जीव ऑक्टोपस पॉल का हाथ। एक तरफ जहां जर्मनी अपने समर्थकों और स्टोरियों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरी, वहीं ऑक्टोपस ने तो 6 में से 6 सही भविष्यवाणियां कर इस वर्ल्ड  कप का मैन ऑफ द टूर्नामेंट ही अपने नाम कर लिया। जर्मनी के एक्वेरियन सी लाइफ सेंटर में पल रहे इस 8 भुजाओं वाले समुद्री जीव की भविष्यवाणियों को खेल जगत ने कुछ यूं लिया जैसे साक्षात भगवान ने आकर कुछ अजूबा कर दिया हो। खैर, जो भी हो जर्मनी की हार और अब आखिरी मैच में जर्मनी की जीत की भविष्यवाणी के सही हो जाने से ऑक्टोपस हीरो जैसा बन गया है। मगर इतने बड़े खेल आयोजन में टीमों और खिलाडिय़ों के प्रदर्शन से ऐसे टोटकों को देखना कितना सही है? क्या ऐसी बचकानी हरकतों से खेल की उष्मा का ध्यान नहीं बंटता है? हमारे यहां तोते हैं, बाबा हैं और ज्योतिषी हैं। इसका मतलब तो यह हुआ कि हम उन्हें आज तक यूं ही कोसते रहे। जिन देशों को आधुनिक कहा जाता है, वहां यह ऑक्टोपस की घटना कितनी सही है?

           
  अब जर्मनी के खेल प्रेमी हैं, जो इन भविष्यवाणियों के सही साबित होने से गहरे सदमे में है। इससे ऑक्टोपस यहां जर्मनी का अघोषित दुश्मन बन गया है। हालांकि यह तुलना करना भी गलत होगा लेकिन, शायद उन यहूदियों से भी बड़ा दुश्मन जिसके चलते यहां हिटलर और नाजीवाद जन्मा। इंसानों की मूर्खताओं से अब कहीं इस बेचारे जीव के अस्तित्व पर कोई बात न आ जाए। वैसे भी खबरें तेज हैं कि जर्मन लोग ऑक्टोपस से कुछ इस कदर खफा हैं कि वे एक-दूसरे को ऑक्टोपस के मांस से बने व्यंजन सुझा रहे हैं। फेसबुक पर एंटी ऑक्टोपस आंकड़े बढ़ रहे हैं। ट्विटर पर ऐसी ट्वीट्स लिखी जा रही हैं, जिनमें ऑक्टोपस को शार्क के हवाले करने की बातें लोग कर रहे हैं। कुछ जर्मन बैड्स ने तो लोकतांत्रिक तरीकों से एंटी-ऑक्टोपस गाने तक तैयार कर लिए हैं। अगर कहें तो, ऑक्टोपस भी चालाक निकला। अपने खिलाफ ज्यादा असंतोष देख जर्मनी को तीसरा स्थान दिला दिया।

  एक बात समझनी थोड़ी मुश्किल है कि खेलों में ऐसा क्यों होता है? किसी भी खेल में जब खेल प्रेमियों की भावनाएं और चरम सीमा तक पैशन जुड़ जाता है, तो पिछले दरवाजे से अंधविश्वास भी दाखिल हो जाता है। अभी तक जब दुनिया इंडिया-पाक की क्रिकेट खिलाडियों को अच्छे प्रदर्शन के लिए तमाम टोटके करती देखती थी तो इसे अंधविश्वास कहा जाता रहा। गांगुली का रूमाल किसी दिन इसके लिए चर्चित होता है, तो कभी शोएब अख्तर का ताबीज। जहां खेल के लिए पैशन ज्यादा हो जाता हैं, वहां एक हद के बाद पैशन अंधविश्वास में बदल ही जाता है। मगर इस तरह ऑक्टोपस या फिर मनी तोते की भविष्यवाणियों से खेल पर लगाए जाने वाले अरबों के सट्टों का क्या होगा?

इस वर्ल्ड  कप में पूछा जाने वाले सबसे अहम सवाल यह नहीं वाला है कि कौनसी टीम जीती? सबसे अहम सवाल तो यह है कि हमने खेल पर कितनी बात की है?

3 टिप्‍पणियां:

  1. insaan k paas jab koi option nahi hota to wo aise hi raste dekhta hai............ab tak india ka majak udaya jata tha superstition ko lekar.....

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  2. खेल से पहले होने वाली भविष्यवाणियों से न सिर्फ सट्टेबाजी बढती है, बल्कि इससे खिलाडियों के आत्मविश्वास में भी कमी आती है...इससे जहाँ एक टीम अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हो जाती है, वहीँ दूसरी टीम का मनोबल गिर जाता है. इस तरह की भविष्यवाणियों पर विराम लगना चाहिए...
    और हाँ एक बात और...अपने देश से ज्यादा अन्धविश्वास तो यूरोप और अमेरिकी देशों में है...भले ही वो तरक्की कर रहे हैं...लेकिन अन्धविश्वास के मामले में हमसे कहीं आगे हैं...
    बहरहाल बहुत ही विश्लेषणात्मक लेखन है...उम्मीद है आगे भी तुम्हारी कलम से इसी तरह के लेख पढने को मिलेंगे...

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