गुरुवार, 15 जुलाई 2010

मुरली के साथ जाएगा, हमारा बचपन और जवानी की देहरी की स्मृतियां


तमिल मूल के एक मामूली दुकानदार के बेटे मुथैया मुरलीधरन क्रिकेट छोड़ रहे हैं। उन्होंने औसतन 6 विकेट प्रति मैच लिए। दुनिया में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज रहे। अपने अलग बॉलिंग स्टाइल और एक्शन से हमेशा सुर्खियों में रहे। आज 792 टेस्ट विकेट लिए मुरली जहां पहुंचे हैं, वहां से दूर-दूर तक कोई नहीं दिखता है। अपने आखिरी टेस्ट में शायद यह आंकड़ा 800 तक पहुंच जाए मगर इसके बाद क्रिकेट की दुनिया में अगला मुरली कौन होगा, होगा कि भी नहीं कैसे सोचें।
            जब कोई खिलाड़ी अपने बेहतरीन दौर से गुजर रहा होता है तो तमाम लोगों से उनकी तुलना की जाती हैं। कौन बेहतर है और कौन बेस्ट, यह सवाल सबके लिए उठते रहे हैं। मुरली ने एक गेंदबाज के तौर पर सारे कीर्तिमान अपने नाम किए, मगर शेन वॉर्न से उनकी तुलना होती रहती है। कल भी होती रहेगी। लोग शेन वॉर्न को बेहतर बताते हुए कहते हैं कि वह मुरली से ज्यादा महान हैं। तर्क कई हैं। पहला कि शेन वार्न ने ऐसे देश के लिए क्रिकेट खेला है, जहां दूसरे साथी गेंदबाज भी विकेट लेने में पीछे नहीं रहे हैं। चाहे वह ग्लेन मैक्ग्राथ हो या फिर जेसन गिलेस्पी। यहां शेन के लिए ज्यादा विकेट लेना हमेशा ही मुश्किल रहा है फिर भी शेन ने अपनी अपना प्रतिभा के दम पर दुनिया भर में राज किया। वहीं श्रीलंकाई टीम में मुरली के साथ सिवाए चामुंडा वास के कोई भी दूसरा गेंदबाज हावी नहीं हुआ। इसलिए अपनी स्पिन में विविधता और अजीब एक्शन ने मुरली को विकेट अपने नाम करने का हमेशा मौका दिया। खैर तुलनाओं का आधार कुछ भी हो मगर मुरली की महानता को कम करके आंकना किसी भी तरह से इस खिलाड़ी के करियर और प्रतिभा के साथ न्याय नहीं है।
        मुरलीधरन ने आज करियर की ऊंचाई पर टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कहने का मन तो बनाया है मगर आज जिन परिस्थितियों और शर्मिंदगियों का सामना कर मुरली यहां तक पहुंचे हैं, वह विशेष है। कुछ के लिए उनकी महानता का भी सबूत है।

                   95-96 को ऑस्ट्रेलियाई दौरे में मुरली पर पहली बार थ्रोइंग के इल्जाम लगे। मगर आर्ईसीसी के बायोकैमिकल टेस्ट में मुरली को आरोपों से रिहाई मिली। युनिवर्सिटी ऑफ ऑस्ट्रेलिया और युनिवर्सिटी ऑफ हॉन्ग कॉन्ग ने 1996 में इसे आंखों का धोखा करार दिया। 1998-99 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे के दौरान एक बार फिर मुरली को संदेह के चलते बुलाया गया, मगर फिर टेस्ट में कुछ भी साफ नहीं हुआ। 2004 में मुरली के दूसरा गेंद फैंकने की सटीकता पर सवाल उठाए गए, मुरली को फिर बुलाया गया मगर मुरली फिर टेस्ट में पास हुआ। जिस रफ्तार से क्रिकेट में टेक्नोलॉजी आती रही मुरली की मुश्किलें बढ़ती रहीं। बार-बार संदेह के चलते बीच सीरीज बुलावा, मीडिया में नेगेटिव खबरों पर घंटों चलती बहसें, क्रिकेट विशेषज्ञों के अखबारों में लेख और न जाने कितने टिप्पणियां और तर्क। मगर इस बीच मुरली फिर उस मैदान पर वापसी करते रहे और जज्बे के साथ।

17 साल के इस लंबे करियर में मुरली ने जो शिखर खड़ा किया है उस तक पहुंचना उतना ही मुश्किल होगा, जितना किसी बल्लेबाज के लिए सचिन पर पार पाना। कहा जाता है कि किसी अच्छे खिलाड़ी और महान खिलाड़ी में एक ही फर्क होता है, दूसरों पर प्रभाव का जिसे अंग्रेजी में ऑरा कहते हैं। शायद यही औरा मुरली का कद है। चाहे कोई भी आ जाए, मुरली जैसे अनूठे हाव-भाव और बॉलिंग एक्शन वाला बेहद कमाल गेंदबाज अब संभवतः हमें दोबारा देखने को नहीं मिलेगा।

3 टिप्‍पणियां:

  1. humara murli ko dil se salam..........chota aur to the point lekh....sahi me bahut acha laga padh k.....
    apan pan mehsooos hua is lekh me.

    sukh sagar singh bhati
    http://discussiondarbar.blogspot.com

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  2. ठीक लिखा प्रवीण। मगर बहुत कुछ नहीं लिखा गया, जिसका लिखा जाना जरूरी था। हम मुरलीधरन को ऐसे विदा नहीं कर सकते। उनमें जो बात थी, वह आने वाले वक्त के क्रिकेट खिलाडिय़ों में कभी भी होगी, इसमें मुझे संदेह है। मुरली श्रीलंका की शान रहे। अगर गलत नहीं हूं तो भारत के दामाद हैं। उनकी जिस खास बात और छवि को मैं इंगित कर रहा हूं, वह अलग तरीके से समझी जा सकती है। अगर कुछ नाम लिए जाएं तो मन में क्या उभरता है? सोचना। ....

    पूरी टिप्पणी को मैंने आखर पर लगा दिया है।
    http://apnaakhar.blogspot.com/

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