अपने वरिष्ठ खेल पत्रकार से भज्जी के शतक के बारे में बात छेड़ी तो उन्होंने एक किस्सा बताया। कहा कि 2001 में भज्जी और युवराज को चंडीगढ़ भास्कर ऑफिस बुलाया गया था। इस प्रोग्राम में एक बोर्ड पर दोनों खिलाडियों के करियर के आंकड़े लगाए गए थे। जहां भज्जी के शतकों की लिस्ट में जीरो लिखा था और तभी भज्जी ने युवी से कहा कि इस जीरो को हटाना है। आज वो जीरो नहीं रहा। वहां अब एक नहीं दो शतक लिखे हैं। ऐेसे शतक जिन्हें कोई पुछल्ले बल्लेबाज के शतक नहीं मानेगा।
भज्जी के इन शतकों को दुनिया एक कंपलीट बल्लेबाज के शतक मानेगी जिसमें क्लास है, स्पीड है, स्ट्रोक है, हिटिंग है, ओवरस्टेपिंग है, स्वीप है, डिफेंस है, कट है, ड्राइव है और सबसे ज्यादा तो आत्मविश्वास है जो दुनिया के किसी बेहतरीन बल्लेबाज की बल्लेबाजी में देखने को मिलती हैं। भज्जी के पास भी सब कुछ है। तभी तो अहमदावाद टेस्ट की दूसरी पारी में सचिन की तरह कवर ड्राइव लगाकर चौके से हाफ सेंचुरी पूरा करता है। सहवाग की तरह 95 रन पर होते हुए ओवर स्टेप कर छक्का मारते हुए 101 पर पहुंच जाता है। तो क्या नहीं है भज्जी के पास और क्यों लिया 88 टेस्ट खेलकर शतक तक पहुंचने का समय? भज्जी के खेल को देखकर वो पुराना भज्जी बिल्कुल नजर नहीं आता है। वही भज्जी जो हमेशा खून में उबाल के साथ बल्ला पकड़़ता था, जो बैटिंग को कभी गंभीरता से लेता ही नहीं था। आठवें नंबर पर बैटिंग के दौरान अगर पीछे से किसी गिलक्रिस्ट या किसी हेडन ने कुछ बोल दिया तो हर बॉल को बाउंडरी पार पहुंचाने की जिद्द पकड़ कर किसी गलत शॉट से आउट हो जाता था। विदेशी धरती पर जाकर नस्लभेदी टिप्पणी का जवाब उसी अंदाज में देता था। यह वही गर्म मिजाज भज्जी है जो आईपीएल में किसी विवाद पर श्रीसंत को थप्पड़ जड़ देता है। यह अलग बात है कि हैदराबाद में भज्जी का दूसरा शतक पूरा करवाने के लिए उसी श्रीसंत ने अपने करियर का सबसे लंबा टाइम पिच पर बिताया।
पहले शतक को भज्जी ने इसे अपने स्वर्गीय पिता को समर्पित किया। मगर अपना दूसरा शतक भज्जी को उस कोच के नाम करना चाहिए जिसने भज्जी को एक बल्लेबाज बनाने का सपना देखा था। एक मामूली परिवार से आने वाले हरभजन को कोच चरणजीत सिंह भुल्लर बल्लेबाज बनाना चाहते थे मगर अचानक मौत के बाद भज्जी कोच दविंदर अरोड़ा के पास पहुंचे जिन्होंने स्पिन की बारीकियां सिखायीं। भज्जी के गुस्सैल नेचर के कारणों को जानने के लिए मैंने अपने साथ के कुछ लोगों से बात की। कोई कहता है कि पंजाबी होने के कारण वह गुस्सैल प्रवृत्ति का है तो कोई उसके पारिवारिक संघर्ष का उदाहरण पेश करता है। पांच बहनों का अकेला भाई और करियर अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि हमेशा क्रिकेट खेलने के लिए प्रेरित करने वाला पिता दुनिया से ही चल बसा। इधर नेशनल क्रिकेट अकैडमी से इसलिए निकाल दिया क्योंकि उसने खिलाडिय़ों को चार्ट पर लिखी डाइट के हिसाब से खाना नहीं मिलने का विरोध किया । विरोध पर भी कुछ नही हुआ सो ताव में आकर चार्ट ही फाड़ डाला जिसके चलते अकैडमी से भी बाहर हो गया। पांच कुंवारी बहनों की जिम्मेदारी और शुरुआती करियर में नाकामयाबी के दवाब के चलते एक आम पंजाबी युवा की तरह भज्जी भी कैनेडा जाकर ट्रक चलाने का भी निर्णय कर चुका था। मगर सौरभ गांगुली और जॉन राइट ने भज्जी के भीतर पल रहे इस गुस्से को चैनल दिया 2001 की गावसकर-बॉर्डर ट्रॉफी में जहां हार के बावजूद 4 विकेट और कोलकाता में हैट्रिक लेकर बन गया टर्बनेटर।
भज्जी का गुस्सा किसी बौखलाहट की निशानी नहीं लगता। यह गुस्सा प्रतीक है क्रिकेट के प्रति उसकी आस्था और उन तमाम सपनों का जो उसे इस खेल से मिले हैं। कभी ठीक से हिंदी भी ठीक से न बोल पाने वाला यह खिलाड़ी आज इंग्लिश चैनल के शो पर गेस्ट बनता है। कभी टीम के लिए फिलर रहे इस खिलाड़ी की अहमियत आज उतनी ही है जितनी बैटिंग के लिए सचिन या सहवाग की है। आज भज्जी सीनियर है और यंगस्टर्स के लिए प्रेरणा भी। प्रेरणा उन सभी युवा और मध्यमवर्गीय परिवारों के खिलाडिय़ों के लिए जो सफलता के गुरूर और पैसे के बहाव में बह जाते हैं। जो खेल से खुद को बड़ा फील करने लगते हैं और बिकने की कोशिश करते हैं।अपने शो वॉक द टॉक में जब शेखर गुप्ता ने भज्जी से यह पूछा कि क्या आपसे भी कभी किसी फिक्सर ने संपर्क करने की कोशिश की। इस पर भज्जी ने जबाव दिया, नहीं। मगर यदि ऐसा कोई बंदा आता तो मैं उसे जोर से थप्पड़ मार देता।
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