कल अखबार में मनोज प्रभाकर की फोटो देखी। मनोज प्रभाकर एक पतले-दुबले, घुंघराले बालों वाले खिलाड़ी की पीठ थपथपाकर उसके शतक के लिए बधाई दे रहे हैं। दिन था 24 अगस्त 1990 का और जगह थी मैनचेस्टर का ओल्ड ट्रैफॉर्ड क्रिकेट ग्राउंड। इस फोटो को देखकर सिर्फ यही सोच रहा था कि क्या उस समय प्रभाकर को इस बात का अंदाजा होगा कि वे जिसे शाबाशी दे रहे हैं या उन दर्शकों को इस बात का फक्र हुआ होगा वे जिस खिलाड़ी के पहले शतक के गवाह बन रहे हैं। उनके लिए आज सचिन का 50वां शतक देखना अलग तरह का अहसास रहा होगा। वो अहसास जो मैंने सचिन के वनडे में दोहरे शतक के दौरान फील किया था। ग्वालियर के रूप सिंह स्टेडियम और वहां के तमाम दर्शकों के साथ-साथ दुनिया भर में टीवी, इंटरनेट और मोबाइल पर लोगों ने इसे भी फील किया था। एक अलग अहसास जो आपको सचिन के इस 50वें शतक से भी मिला है। विदेशी धरती के दौरे का पहला मैच एक पारी और 25 रनों से हार जाने के दुख के बीच सचिन के 50वें शतक का मरहम। भारत हारा और मीडिया ने बिल्कुल भी आलोचना नहीं की क्योंकि सचिन जो जीता था। लोगों ने सचिन की जीत को अपना लिया हार को भुला दिया।
सचिन के 50वें शतक को सेलिब्रेट करते हुए एक न्यूज चैनल ने उनके पचासों शतकों को दिखाया। 50वें से वापिस पहले शतक तक का सफर। सभी प्रमुख अखबारों ने फुल पेज सचिन के आंकड़ों को गिनाया। सचिन के साथ खेल चुके पूर्व खिलाडियों ने अपने एक्सक्लूसिव कॉलम भी लिखे। यह पहली बार नहीं हुआ। यह हर उस मौके पर होता है जब यह खिलाड़ी रन बनाता है। मगर यह सारी कवरेज देखकर मैं सोचने लगा कि कैसी कवरेज होगी उस दिन के अखबारों और चैनलों पर जिस शाम सचिन क्रिकेट को अलविदा कहेंगे। क्रिकेट से इस खिलाड़ी की विदाई के बारे में सोचना बिल्कुल भी सुखद नहीं है। मगर सच तो यही है कि एक दिन सचिन इस खेल से विदा लेंगे और कोई टाइम मैग्जीन सचिन को कवर पर छापने की बजाए पूरी मैग्जीन ही सचिन को समर्पित करेगी, कोई चैनल 24 घंटे सचिन के बचपन से तब तक के वीडियो दिखाएगा और अखबार का हर पन्ना सचिन के नाम और काम से रंगा होगा। मगर इसे पढऩा इतना सुखद कभी नहीं होगा जितना सचिन की एक छोटी से पारी की कवरेज को पढऩे में आता है।
हाल में एक नेशनल इंग्लिश डेली के सप्लीमेंट में कवर स्टोरी थी कि क्या हम आसानी से किसी भी सेलेब्रिटी को अपना आइडियल बना लेते हैं। कितना मुश्किल है अपनी छवि, शोहरत और सामाजिक जिम्मेदारी को ढो पाना। संदर्भ था अमेरिकन गॉल्फर टाइगर वुड्स, मीडिया सेलिब्रिटी बरखा दत्त, पाक क्रिकेटर्स, शेन वार्न और हमारे नेताओं का। मगर इसे पढऩे के बाद मुझे लगा कि नहीं हमने सचिन तेदुंलकर को आसानी से अपना आइडियल नहीं बनाया है। 21 सालों के इस सफर में सचिन के कई टेस्ट हुए हैं जिनमें लगातार पास होकर हमारा ट्रस्ट जीता है। इस टेस्ट में चाहे अनेक खिलाडिय़ों से सचिन की महानता की तुलना हो, फॉर्म हो या फिर आंकड़ों के खेल में जीत। हर टेस्ट में जीता है सचिन। इन 21 सालों में सचिन से ज्यादा पैसा शायद ही किसी ने कमाया मगर पैसे के साथ पॉपुलैरिटी, फैन फॉलोइंग और सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी को सचिन ने उसी गंभीरता और पैशन से निभाया जैसे वे क्रिकेट को निभाते आए हैं। शराब कंपनी के प्रचार के लिए करोड़ों रुपयों के ऑफर को आज का क्रिकेटर यूं ही नहीं ठुकराता है।
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