बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

सचिन तुस्सी ग्रेट हो!!!!!!!


क्या क्रिकेट के इतिहास में पहले कभी ऐसा हुआ है? क्या कभी ऐसा हो सकता है कि क्रिकेट के दीवाने अपने पंसदीदा हिटर खिलाडी के बल्ले से चौके -छक्के निकलते देख खुश नहीं बल्कि उसी को कोस रहे हों? एक ऐसा समय जब भारत अपनी पारी में 400 का आंकड़ा छू रहा हो और कोई उस पर ध्यान ही न दे रहा हो? किसी को यह खबर नहीं कि भारत का स्कोर कितना है। वे तो बची गेंदों और धोनी के गोली से भी तेज निकल रहे शॉट को देख-देख कर कु लबुलाहट महसूस कर रहे थे। वे इंतजार कर रहे थे तो सिर्फ एक रन का। बस एक रन। क्रिकेट के भगवान सचिन के बल्ले से एक रन। यह इंतजार और लंबा महसूस हो रहा था जब दुनिया को दो ओवर तक का लंबा इतजार करना पड़ा। ये दो ओवर उन 50 ओवर से भी लंबे महसूस हुए जब सचिन विकेट के दूसरे छोर पर खड़े अपनी स्ट्राइट का इंतजार कर रहे थे। पारी की तीन गेंद रहते सचिन ने आखिर एकदिवसीय क्रिकेट की दुनिया का वो कीर्तिमान भी अपने नाम कर लिया जो 39 साल से सभी के लिए अजूबा था। और आखिर दुनिया ने देख लिया क्रिकेट के भगवान का एक और करिश्मा जिससें अमर हुआ ग्वालियर का कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम और मैच से जुड़ा हर वो नाम जो इन विस्मरणीय क्षणों के ग्वाह बना।


सचिन की इस पारी में दुनिया ने 36 साल के नहीं बल्कि 20 साल के सचिन को देखा। रनों की निरंतर भूख, विपक्षी टीम के गेंदबाजी को धराशायी कर देने का मादा , विकेटों के बीच जोशीली दौड़, अपनी विकेट की कीमत की समझ और स्वस्थ खेल भावना का प्रदर्शन सचिन को क्रिकेट की दुनिया का भगवान कहने पर मजबूर करता है। क्रि के ट करियर में दो दशक से भी ज्यादा समय से डटे सचिन में आज भी वही भूख है जो बचपन में थी। बचपन में घंटो बल्लेबाजी करने पर भी कोई गेंदबाज सचिन को आउट नहीं कर पाता था। ऐसे में गेंदबाजों के उत्साहवर्धन के लिए कोच अचरेरकर स्टंप पर एक रूपए का सिक्का रख दिया करते थे और यह सिक्का उसी को दिया जाना होता था जो सचिन को आउट कर दे। मगर सिक्के को सामने देख सचिन और दृढ़ता से डट जाते थे और शाम तक सचिन को कोई भी आउट नही कर पता था. तो सचिन को ही वह सिक्का मिलता था। ऐसे में मिले एक रूपए के 13 सिक्कों को सचिन अपने जीवन की सबसे कीमती सम्पत्ति मानते हैं। सचिन की इस पारी में भी बिल्कुल यही दृश्य देखने को मिला। हर गेंदबाज बल्ले के सामने धराशायी और हताश दिखा। 50 ओवर तक सचिन डटे रहे और रन खुद व खुद बनते गए। सिर्फ 147 गेंदों पर 25 चौके, 3 छक्के मारकर इस महान खिलाड़ी ने 200 रन का सपना भी पूरा किया।


20 साल पहले जब बच्चे से दिखने वाले सचिन ने क्रि केट करियर की शुरुआत की थी तो किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि 20 साल बाद तक यह खिलाड़ी इतने बड़े मुकाम तक पहुंच चुका होगा। खेल के प्रति अति उत्साह और इमानदारी का ही कारण है कि सचिन आज वहां है जहां पहुंचने का सपना हर खिलाड़ी देखता है। खेल के प्रति इसी उत्साह और पैशन का नमूना इस खिलाड़ी ने 1989 में ही दिखा दिया था। करियर के शुरूआती मैच में पाकिस्तान के खिलाफ बल्लेबाजी करते हुए सचिन मुंह पर गेद खा बैठे थे। उस बच्चे से दिखने वाले खिलाड़ी के नाक से खून बह रहा था मगर वो पिच छोड़कर जाने को तैयार नहीं था। यह वही खिलाड़ी है जो अपने पिता के देहांत के अगले दिन ही देश के लिए खेल मैदान पर उतर आता है। १९९९ के विश्वकप के इस मैच में सचिन केन्या के खिलाफ शतक लगाकर पिता को श्रद्धांजली देते हैं। अपने खेल से सचिन ने हर मुकाम हासिल किया है मगर वर्ल्ड कप जीताने की टीस आज भी इस खिलाड़ी के मन में है। मगर सचिन की इस अजूबा पारी और गजब से फिटनेस लेवल से यह साफ हो गया है कि सचिन देश के इस ख्वाब को पूरा क रने के लिए भी तैयार है। 2011 का विश्व कप अब दूर नहीं है और सचिन इसे जीतकर यकीनन दुनिया में अपनी पहचान को अमर कर दिखाएगें। टेस्ट मत्चों में तिहरे शतक के साथ ही शतकों के शतक का भी दुनिया बेसबरी से इंतज़ार कर रही है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. good my dear lovely frnd, keep it up, u r going on right way, and wish that u will get a prestigious status and known image as a famous sports journalist, ...
    world is looking ur effort and ur thoughts what u r expressing through blogg... i m sure that the day is not very far when everyone will demand to u for an authentic reaction on every sports activeities......

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  2. acha post hai..........

    ab sachin par to......har post adhura lagega hai.........hum log kya kahe bhala sachin k bare me...............jitna kaho kum hai.........we are not eligible to judge such a great legend.

    sukh sagar
    http://discussiondarbar.blogspot.com/

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  3. पहली बार पढ़ा तो बेहद पसंद आया। पसंद इस संदर्भ में कि सचिन जैसी ऐतिहासिक पारियों में तुरत-फुरत में कुछ भी लिखना बहुत कठिन होता है। लगता है कि कोई बिल्कुल मौलिक लिख पाएगा या नहीं? कि कल के अखबारों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण ही यही विषय होगा? कि पूरे देश की जनता जब मेरे लिखे शब्दों को पढ़ेगी तो उसे मेरा लिखा दूसरों के मुकाबले कैसा लगेगा? कि श्रवण गर्ग, प्रदीप मैगजीन, एन राम, हर्ष भोगले, अनिल कुंबले, इमरान खान और अन्य बड़े खेल लेखकों के लिखे के बीच मेरे लिखे की अहमियत क्या होगी? ऐसे वाकये या मौके बराक ओबामा के अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने पर , मुंबई में 26/11 की घटना के वक्त, पहले 20-20 विश्वकप में भारत की जीत के दिन, कई क्रिकेट जगत की घटनाओं के वक्त, आतंकवादी हमलों के समय, होली, दीपावली, आम बजट, रेल बजट और सुनामी जैसे वक्त में आए हैं। तो इन विचारों के मायने में पहली बार जब इसे पढ़ा तो अच्छा लगा।

    मगर दूसरी बार जब कुछ कमी पाने के लिए पढ़ा तो मन में दूसरे समान विषय वाले आलेखों की तुलनाएं दौड़ गई। इस तरह के लेखों में ज्यादा तुलनाएं नहीं की जा सकती है। क्योंकि सभी का अपना अंदाज होता है। तो तुमने शुरुआत अपने अंदाज में की है। अब अपनी लेखनी से दूसरे आलेखों को मिलाना तुम्हारा काम है।

    खैर जो किया जा सकता था, वह यह कि जो रचनात्मक शुरुआत तुमने की है उसमें कुछ कम शब्द इस्तेमाल हो सकते थे। जितने आकार का तुम्हारा लेख है उसके अनुपात में यह कुछ ज्यादा हो गया। मगर फिर भी मैं कहूंगा कि पहला पैरा उचित था। जायज था। और बिल्कुल अभिनव था। पहले पैरे के अंत में ग्वालियर के स्टेडियम का जैसा संदर्भ दिया गया है, वह मुझे बहुत पसंद आया। लेखों में ऐसे ही वजन की उम्मीद की जाती है।

    अंतिम पैरे तक और कुछ दूसरे पैरे के अंत तक उस अभिनव तत्व की कमी लगी। कुछ और किया जा सकता था। मगर एक बात संतोष की यह है कि पूरा लेख एकरूप है। कहीं टूटा नहीं है।

    बहुत सारी चीजों को शामिल किया जा सकता था। सईद अनवर की पारी के वक्त लोगों के मन में क्या चल रहा था। उस वक्त एक बच्चे के रूप में तुम ने क्या महसूस किया और जो रोमांच उस वक्त हम में था क्या वह कल था? मुझे लगता है कि नहीं। क्योंकि कल हम 120 करोड़ लोगों को इस बात का दिलासा खुद को देना था कि भारत के एक खिलाड़ी ने पाकिस्तानी खिलाड़ी का रिकॉर्ड तौड़ दिया या फिर यह कि सचिन एकदिवसीय क्रिकेट में महान है और उस महानता में बस यही 194 रनों का रिकॉर्ड आड़े आ रहा था। इस वक्त शाहजाह के उस मैच में हमारे खून में जो उबाल ला दिया था, वह कल क्यों नहीं था? यह सवाल तुम उठा सकते थे।

    मैच खत्म होने के बाद जैसे हाशिम अमला ने और एक और खिलाड़ी ने और बाद में विकेटकीपर बाउचर ने सचिन ने हाथ मिलाया वह दृश्य कैसा था? उसका वर्णन दिया जा सकता था।

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  4. आपकी इस टिप्पणी से मै धन्य हुआ. सचिन के बारे मै जब सोचने बैठा तो इतना कुछ दिमाग मै था की बयाँ करना मुश्किल था. आपके इन सुझवों पर अम्ल करने की पुरजोर कोशिश रहेगी . धन्यवाद .

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  5. अतीत से जुड़ी सचिन की कई अच्छी जानकारी दी गई है। इसीप्रकार लिखते रहें तो बहुत जल्दी खेल पत्रकार के रूप में स्थापित हो सकते हैं। - prashant roychoudhary

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  6. wakai ek taraf dhoni chouke chhake uda rahe the...lekin sachin ke 200 run dekhne ki betabi mein 400 ka score aur dhoni ke hawai shot bhi bemani lag rahe thi....kasam se.

    Sachin u r great... aur tum isi tarah kuch aachi jankariyan dete raho...sikkon wali baat ekdam unique lagi...

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