शनिवार, 13 मार्च 2010

युवाओं के लिए आईपीएल का रेड कारपेट .....



सुभाष दीक्षित, नाम तो शायद सुना होगा। सन 2000 में सुभाष भारत की अंडर-15 टीम का कप्तान था। उस साल टीम ने उसकी कप्तानी में वर्ल्ड कप खेला। इरफान पठान और आईपीएल के नए चेहरे अंबाती रायुडु, सुभाष की कप्तानी में ही खेलकर आगे बढ़े हैं। कानपुर के इस होनहार खिलाड़ी को शुरूआती सफलता के बाद आगे बढऩे का मौका नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के लिए अंडर-19 टीम का हिस्सा तो रहा मगर राज्य रणजी टीम में जगह नहीं मिली। खेल के प्रति इतना संजीदा था कि सबकुछ उसी को मान बैठा। पढ़ाई-लिखाई छूट गई सो कोई दूसरा विक ल्प भी नहीं था। दसवीं की परीक्षा में कई बार बैठने पर पास हुआ। बूढा पिता और एक बहन मानसिक रूप से बिक्षिप्त थे इसलिए घर वालों को भी आशाएं कुछ ज्यादा ही थीं। 9 जून 2007 को दीक्षित क्रिकेट अभ्यास के लिए घर से ग्रीन पार्क स्टेडियम के लिए निकला। स्टेडियम के पास रास्ते में एक बहुमंजिला इमारत दिखी। सुभाष रूका और छठी मंजिल पर चढ़ कर नीचे कूद गया। सुभाष की मौके पर ही मौत हो गई। सुभाष ने मौत को चुना क्योंकि प्रतिभा के बावजूद उसे आगे मौका नहीं मिल पाया। चयन और पैसे की कमी के चलते एक खिलाड़ी को जान देनी पड़ी।

पिछले कुछ दिनों से टेलीविजन पर एक विज्ञापन आ रहा है। उस में हिमालय की चोटी पर से एक बड़े रेड कारपेट-रोल को छोड़ा जाता है। यह रेड कारपेट लुढ़कता हुआ पहाड़ी, मैदानी और जंगली इलाकों से गुजरते कस्बों और चकाचौंध भरे भागते-दौड़ते शहरों से निकलता हुआ क्रिकेट स्टेडियम तक पहुंचता है। यह रेड कारपेट उन तमाम युवा खिलाडिय़ों को धन से लबरेज आईपीएल में खेलने की दावत देता दिखता है। असल में आज आईपीएल में उन तमाम खिलाडिय़ों के सपने पुरे होते दिख रहे हैं जिन्हें ये गांव-कस्बों के खिलाड़ी देखते हैं। शायद आईपीएल का यह रेड कारपेट सुभाष दीक्षित को उस छत से कूदने से बचा सकता था यदि यह एक साल पहले आया होता। आईपीएल में खेलते हुए आज हम उन खिलाडिय़ों को दुनिया का हीरो बनते देख रहे हैं जो छोटे कस्बों-शहरों से आते हैं।

आईपीएल अपने तीसरे संस्करण की शुरूआत अलग अंदाज और रोमांच के साथ कर चुका है। ओपनिंग सेरेमनी ऐसी कि दुनिया देखती रह जाए और उससे भी रोचक रहा पहला मैच। शाहरूख के रणबांकुरों और हैदराबादी सूरमों के बीच का मुकाबला, जिसमें जिसे जीता समझा वो हार गया और हारा हुआ जीत गया। दूसरे दिन के पहले मैच में पहले युवा और नए चेहरे अंबाती रायुडु (वही रायुडु जो सुभाष दीक्षित की कप्तानी में खेला था) ने और फिर रॉयल युसुफ पठान ने सबसे तेज शतक लगाकर पहाड़ से स्कोर को लांघने की कोशिश की। इसके अलावा इस मैच में उसी रेड कारपेट की बदौलत आईपीएल में खेल रहे पालमपुर, हिमाचल के पारस डोगरा को भी देखने का मौका मिला। हालांकि राजस्थान रॉयल्स मैच हार गए मगर दर्शकों को तो वो मिल ही गया जिसके लिए बेचैन थे, छक्के-चौकों की बरसात। यह बरसात अगले 45 दिनों तक यूं ही जारी रहेगी। साथ ही इस दौरान मौका मिलेगा उन तमाम युवा चेहरों को देखने और सराहने का जिन्हें आईपीएल का रेड कारपेट इस आधुनिक चकाचौंध में ला रहा है। आज हर वो व्यक्ति खुशी से पागल हो रहा होगा जिसके अपने मौहल्ले,कस्बे या शहर का लड़का आईपीएल में खेल रहा होगा। विदेशी खिलाडिय़ों या अपनी ही राष्ट्रीय टीम के खिलाडिय़ों के चौकों-छक्कों में उसे आज शायद वो मजा नहीं आ रहा होगा जो मजा अपने पास के इलाके के खिलाड़ी के खेल में आ रहा होगा। मैं यह इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद ऐसा महसूस कर रहा हूं। पारस डोगरा जो पालमपुर की पहाडिय़ों से आईपीएल की चकाचौंध में पहली बार खेल रहा है। अपने इलाके के खिलाड़ी को देख मैं खुश हूं, यकीनन मैं गलत भी नहीं हूं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. IPL k fayde to bahut sahi bataye..........lekin sir ji....is game ne asli game barbad kar diya...jis spirit aur aim se khelo ki shuruat hui thi un se aaj k games dooooor bhag rah ehai......

    Business oriented hone k nate mai cricket k commercialization ko support karta hoon but jyada Mitha jahar ho jata hai....ye to ati hogayi....sirf limited log iske paise se bandar bant kar rahe hai....

    sukh sagar
    http://discussiondarbar.blogspot.com/

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  2. thik kaha aapne magar is bandar=-bant mein khiladiyon ko bhi paisa mil rha hai...isi bahane sports infrastructure world lable ka ho rha hai. and one thing to keep in mind that we cant remain intact from commercialisation.

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